मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

यूँ तो हिंदी में पार्श्वगायन करने वाले सभी गायकों ने कई अलग- अलग भाषाओं में  गायन किया है पर हिंदी के बाद अगर किसी भाषा में उनका भाषाई अपनत्व दिखा है तो वह है भोजपुरी ,और हो भी क्यों न ,भोजपुरी की सौंधी खूशबू उन्हें अपनी तरफ आकर्षित किये बिना नहीं रहती. तभी तो भोजपुरी में गायन कर इन्होने भोजपुरी की शान बढ़ाई है .
                                                                               भोजपुरी में गायन की  ललक आज की बात नहीं ये काफी पुरानी है - आप खुद इन  नये पुराने  गायकों सुन कर देख लीजिये -

मोहम्मद रफ़ी 1961 में आई फिल्म गंगा यमुना में भोजपुरी की महक लिए रफ़ी साहब का गाया ये गीत नैन लड़ जईहे त मनवा मा कसक होइबे करी अपने ज़माने में काफी लोकप्रिय रहा . असल में यह हिंदी फिल्म का गाना है मगर गीत के सारे भाव और शब्द भोजपुरिया संस्कृति हीं दर्शाते है .





उदित  नारायण  उदित नारायण का तो बचपन  ही भोजपुरी संस्कृति में रचा बसा  है फिर
इनके गाये भोजपुरी गानों का क्या कहना - भोजपुरी संस्कृति की  बखान करते हुए सैकड़ो  गाने आज भी हिंदी गानों की मिठास देते हैं . गोरी के गोरे गोरे गाल बिहार में धमाल करे (अलका याग्निक के संग ), कुछ बात बा ,ओढ़नी  के रंग  पियर जैसे  गाने एक -एक करके आते गए,आज उदित हिंदी से ज्यादा भोजपुरी के लिए व्यस्त हैं .




कुमार सानू    भोजपुरी में 1 हजार से भी अधिक गाने गा चुके कुमार सानु आज भी भोजपुरी में
गायन हेतु सक्रीय हैं -  शीशा के दिल बनल रहे तो  इतना चर्चित रहा की उस समय के हिंदी गानों की कड़ी में शीर्ष पर रहा . उड़े के बुलावे काहे तोहर अंचरवा ,केहु देख लिहि एतना सिंगार में , जेहनो गंगा  के पानी . मदहोश मोहबत मनवा में , गोरी रे गोरी, ऐसे लागल प्रीत , हम इन्तेजार करीले , जिंदगी आज हमसे खफा हो गईल , लागे ना मनवा हमार , कागज पर कबो धरती पर कबो , बेटी भइल परदेशी (विदाई ),  में हिंदी जैसी खनक हैं .  



कैलाश खेर    भोजपुरी में दर्द और जीवन की सच्चाई बयां करते इनके गाये गाने आज भी
                                         झकझोर देते हैं -  भोजपुरिया माटी के शान   जब समय होला कमजोर   , आदमी के लेला जिनिगिया इम्तेहान ,  चल चल रे बटोहिया भाई  ,धरती पुत्र धरती पुत्र , बालू से तेल निकल जाला..भरोसा न छोड़ राम के  , ममता माई के महान , दुनिया एगो बाग बगइचा नारी फूल सामान बा , ई दुनिया के का हो गईल बा ,अंखिया कमजोर करेला , राम करे केकरो न मिले , असंभव कुछो न बा संसार में , प्यार मोहबत इश्क़ गीत , रिश्ता बदल गईल रे भइया ,इ प्यार प्यार हवे-प्यार प्यार , पंछी तोहार नहीं इंहा बा ठिकाना, समय होत बलवान, छूट गईल आपन घर , ईश्वर के मर्जी के आगे ,
जैसे गाने काफी  लोकप्रिय हुए .

विनोद राठौड़     एक से बढ़कर एक रोमांटिक गानों के लिए प्रसिद्ध.
विस्फोट भइल बा छपरा में मोहब्बत के मौसम , लहंगा उठादेम रिमोट से , काका हमर विधायक हवे जैसे गानों के लिए भोजपुरी निर्माताओं की पहली पसंद .
इनके करियर के गानों की लिस्ट बनायीं जाये तो हिंदी जितना ही भोजपुरी मिलेगी, अभी भी भोजपुरी और हिंदी गायन में सक्रिय .
भोजपुरी सिनेमा की लोकप्रियता देखते हुए ऐसी आशा है की इस कड़ी में अन्य गायकों का नाम जुड़ता रहेगा .और भोजपुरी संगीत भी हिंदी की तरह  यादगार होगी .

बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

Did you know that? क्या आप जानते हैं ?

Posted by zindgi.com | 2:08 am Categories:
बांद्रा मुंबई स्थित महबूब रिकॉर्डिंग स्टूडियो में संगीतकार उषा खन्ना पिछले छः घंटे से गायक येशुदास का इंतजार किये जा रही थीं , साजन बिना सुहागन(1978) के "मधुबन खुशबू देता है " गाने की रिकॉर्डिंग होनी थी, अचानक से मूसलाधार बारिश होने लगी, जो रुकने का नाम नहीं ले  रही थी ,तेज बारिश और आँधी ने रिकॉर्डिंग टोली को मायूश कर यह मानने पर मजबूर कर दिया था की अब येशुदास  रिकॉर्डिंग के लिए नहीं आ सकेंगे ,तभी एक गाड़ी वहां आकर रुकी ,दरवाजा खुला अंदर से येशुदास जो पूरी तरह से भींगे हुए थे उतरे ,स्टूडियो में मौजूद सभी के चेहरे खिल उठे ,बिना देर किये और अपने तबियत की परवाह किये ,रिकॉर्डिंग की, और ऐसा गाया ,की इंतजार के वो पल जो मायूशी में  गुजरे थे ,याद नहीं रहे !


प्रसिद्ध संगीतकार नौशाद (25 दिसम्बर 1919)मात्र 17 साल की उम्र में ही मुंबई संगीतकार बनने ,घरवालों को बिना बताये आ गए थे ,ये वो दौर था जब फिल्म या इससे जुड़े क्षेत्रों में जाने वालों को अच्छा नहीं समझा जाता था , इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की जब घरवालों ने इनकी शादी तय की तो नौशाद से यह कहा की वधूपक्ष वालों को उन्होंने यह कहा है की लड़का दर्जी है और मुंबई में सिलाई का काम करता है ,और उनसे पूछे जाने पर उन्हें भी यहीं बताना है , इस तरह हुयी इनकी शादी !


जावेद अख्तर का नाम आते हीं प्रसिद्ध गीतकार के रूप में बनी इनकी छबि जेहन में कौंध जाती है ,पर जावेद साहब गीतकार बनने से पहले फिल्मों की कहानियां लिखते थे ,पर इनका नाम परदे पर नहीं आता था ,ये फिर भी खुश थे ! बाद में  उनकी जोड़ी सलमान के पिता और इनके दोस्त सलीम खान के साथ सलीम-जावेद के रूप में बन गयी ! अमिताभ अभिनीत जंजीर की कहानी भी इसी जोड़ी ने लिखी और अमिताभ बच्चन के साथ-साथ इस जोड़ी का नाम प्रसिद्ध हो गया !
                  जावेद साहब उस वक्त भी शायरी करते थे पर उनकी शायरी उनकी डायरी तक हीं सिमित थी ,जब यश चोपड़ा ने फिल्म -सिलसिला  बनाना शुरू किया ,तो किसी दोस्त के कहने पर जावेद को अपने बंगले पर बुलाकर कहा की आप कहानी के साथ -साथ अच्छी शायरी भी लिखते हैं ,मैं चाहता हूँ की" सिलसिला "के गीत आप हीं लिखें , और हाँ इस फिल्म से शिव-हरी की संगीत जोड़ी (शिव शर्मा और हरिप्रसाद चौरसिया) भी पहली बार संगीत क्षेत्र में कदम रख रहे हैं !
        अगले दिन "देखा एक ख्वाब तो ‍ये सिलसिले हुए' "रिकॉर्ड हुआ, फिर उसके अगले दिन  'नीला आसमा सो गया..! इस तरह जावेद अख्तर कहानीकार के साथ-साथ गीतकार भी बन गए,और जो शायरी उनके डायरी में कैद थे फिल्मों के माध्यम से सामने आ गए !


मन्नाडे से जुड़ी दो रोचक घटनाएं  उनके लिए हमेशा यादगार रहीं - एकबार जब फिल्म ' बसंत बहार(1956)" के "केतकी गुलाब जूही चम्पक बन फुले " गाने के लिए उन्हें शास्त्रीय संगीत के महान गायक भीमशेन जोशी को गायन में कमतर साबित करने के लिए गाने को कहा गया ,दरअशल फिल्म में नायक को गायन में जीतते हुए दिखाना था ,और गायक की आवाज़ के लिए मन्नाडे को चुना गया था !तब मन्नाडे ने मन हीं मन योजना बनायीं थी की अगले दिन से  हीं वे बिना बताये पुणे चले जायेंगे और किसी को पता भी नहीं चलेगा की मन्नाडे कहाँ गायब हो गए ,और गाने की रिकॉर्डिंग किसी अन्य गायक से करा ली जाएगी !
 इसी तरह फिल्म पड़ोसन(1968) के " एक चतुर नार कर के सिंगार" गाने के लिए उन्हें किशोर कुमार से हार  जाने को कहा गया , तब फिल्म के निर्माता और निर्देशक अभिनेता महमूद ने दादा को समझाते हुए कहा था की दादा ये आप और मैं हीं नहीं सभी जानते हैं की आपको वास्तविक जीवन में नहीं फिल्म में नायक से हारना है ! हालाँकि किशोर द्वारा बनाये उस गाने के संगीत में सरगम और तान का वास्तविक संगीत से कोई लेना देना नहीं था !

संगीतकार मदन मोहन (ग़ज़ल विशेषज्ञ ) से जुड़ी ये दिलचस्प वाक्या गीतकार नक़्श लायलपुरी के लिए
हमेशा यादगार रही ,मदन मोहन नक़्श लायलपुरी के शायरी के बड़े प्रशंसक थे ,फिल्म "दिल की राहें" के लिए जब उन्हें संगीत बनाने की जिम्मेवारी सौपीं गयी तो उन्होंने फिल्म के गीत लिखने के लिए नक़्श लायलपुरी का नाम सुझाया ,नक़्श साहब ने तीन गाने लिख भी डाले और वे रिकॉर्ड भी हो गए मगर अभी तक उन्हें उनका मेहनताना (रकम ) नहीं मिला था इसकी भनक मदन मोहन जी को लगी तो उन्होंने निर्माता को डांट लगायी, नक़्श को उनकी फ़ीस तो मिल गयी मगर इस बात से खफा होकर निर्माता ने नक़्श साहब को ये कह कर अगला गाना लिखने से मना कर दिया की उनके अब बदले शेष  गाने दूसरे गीतकार से लिखवाये जायेंगे आप अब फिल्म के अन्य गाने नहीं लिखें ,जब इस बात की खबर मदन मोहन जी को हुयी तो वे अड़ गए की अगर नक़्श अगर इस फिल्म के अन्य गाने नहीं लिखेंगे तो वे भी अन्य गानों के संगीत नहीं बनाएंगे ,तब निर्माता को विवश होकर इन लोगों से माफ़ी मांगनी पड़ी ! समुद्र के किनारे दोपहर तक बैठ कर नक़्श ने  गाना लिखा  शाम तक लता की आवाज़ में रिकॉर्ड भी हो गया और जो गीत बना वो था  - "रस्में उल्फत को निभाए तो निभाए  कैसे "

       
 जिस समय नुसरत फ़तेह अली ख़ान का नाम दुनिया में सिर चढ़ कर बोल रहा था उस समय उनके भतीजे राहत फ़तेह अली ख़ान उनसे गायन की बारीकियां सीख रहे थे.जब भी नुसरत कहीं भी प्रोग्राम पेश करते तो राहत का काम सिर्फ़ अलाप देना होता था.राहत फ़तेह अली ख़ान बताते हैं कि स्टेज पर तो उन्हें डाँट पड़ती ही रहती थी.खाने के बेहद शौक़ीन नुसरत फ़तेह अली ख़ान ने जी भरकर खाया और जी भरकर गाया. और अपने गाने के अंदाज दे गए अपने भतीजे राहत फतेह अली खान को .

शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

अपने मिठास से आनंदित करने के लिए पुरे विश्व में मशहूर हिंदी फिल्म संगीत के कई  दौर आये और गये ,पर  उन गानों से  भारतीय संस्कृति गयी न ही  निर्मलता ! जैसे -जैसे हम आधुनिक होते गये हमारे गाने और सुनने के नजरिये में भी बदलाव होते गये , पिछले कुछेक वर्षों तक तो सब कुछ  ठीक था , पर इन दिनों जहाँ तकनीक और  डिजिटल संचार ने सभी को अपनी चपेट में कर लिया है ,विदेशी गानों को देखते देखते हम खूद की  शैली को भूलकर दूसरे की नक़ल करने पर उतारू हैं ,और ये भूल गये हैं की  विदेशी गाने देखने के लिए हैं सुनने के लिए नहीं  जबकि हिंदी संगीत आज भी अपनी कर्णपिर्यता के लिए विश्व के सामने मिशाल है ! 
                 फिर हिंदी सिनेमा जगत में अपनी धाक ज़माने वाले गीतकार, संगीतकार,गायकों और नायकों को क्या हो गया है  जिन्हे इन्ही अश्लीलताओं में श्रोता की पसंद नजर आती है !

                     आइये हिंदी फिल्म संगीत के नए संस्कार पैदा करने वाले युग के कुछ गानों पर नजर डालते हैं- जहाँ हन्नी सिंह जैसे गायक , गीतकार या संगीतकार पद्मश्री  की दौड़ में हैं ! 

सन 2013  में आई अक्षय कुमार अभिनीत बॉस  का ये गाना - पार्टी ऑल नाईट -आज बोतला खुल्लन दो ,दारू -सारू धुल्लन दो ,विस्की दा पैक लगाके ,सारी दुनिया भुल्लन दो ........दम है तो बंद करवालो ! 

सन 2011 में आई फालतू फिल्म का मीका का गाया  ये फालतू गाना  आलतू जलाल तू ,आई बाला को टाल तू,टेंसन -वेन्सन छोड़ दे बच्चा बन जा फुल्ली फालतू    

आर .राजकुमार (2013 ) का ये गाना - बीड़ी पीके नुक्कड़ पे ....अब करूँगा गन्दी बात !

रागनी एमएमएस- 2 (2014 ) का - चार बोतल वोडका (शराब ) - काम मेरा रोज का ,मैं रहूँ सारी रात ....दारू पियूं लगातार..एक अध बोतल सब पीते हैं  ,मैं तो पियूं बोतल चार  

तेवर (अर्जुन कपूर अभिनीत-2014 ) का  ये सुपरमैन वाला गाना -एक बात बतादूं आपसे ,नहीं डरता किसी के बाप से ,जा    मेरे नाम का बिल फाड़ ले ,जो उखाड़ना है उखाड़ ले -मैं तो सुपर मैन सलमान का फैन ,जो लेवे पंगा कर दूँ माँ बहन !
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