तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे से अपने दिल की बात बयां करते असंख्य सुरीले नग़मे आज भी सदाबहार हैं .उनमे मिठास इतनी ज्यादा है की उन्ही गानों को दुबारा -तिबारा अपनी -अपनी आवाजों में गानें से , न गायक खूद को रोक पाये न फ़िल्मकार अपनी फिल्म में गवाने से. चाहे कुमार सानू का- किशोर कुमार के दर्द भरे गीत या 24 कैरेट गोल्ड हो या अभिजीत का - मांझी रे या कुछ तो कहो या फिर सोनू निगम का - रफ़ी की यादें , सभी अलबमों में उन गायकों के प्रति सच्ची श्रद्धांजली और गानों के प्रति स्वाभाविक आकर्षण ही तो है .
इन्ही राहों पे चलते हुए अन्य गायकों (साधना सरगम ,बाबुल सुप्रियो ,विपिन सचदेवा ,संजय ,सुरेश वाडेकर,अनवर आदि ) ने भी अपनी अपनी पसंद के ढ़ेर सारे सदाबहार गानें अपनी आवाजों में गाकर अपनी और श्रोताओं की पिपासा तृप्त की . गौर करें ,फ़िल्म दिल विल प्यार व्यार (2002 )के सभी गाने इसी रस के हैं- अब के सावन में जी डरे " (बाबुल- साधना) गाना, फिल्म- जैसे को तैसा 1973 का है जिसे किशोर और लता ने गाया था , "ओ हसीना ज़ुल्फोंवाली"(अभिजीत, सुनिधि चौहान)
गाना फिल्म तीसरी मंजिल(1966) रफ़ी और आशा का गाया हुआ है, "ओ हंसिनी" (हरिहरन) गाना, फिल्म-ज़हरीला इंसान(1974) किशोर का गाया हुआ है , "कहना है"(बाबुल ,पृथा मज़ूमदार) वाला गाना किशोर का गाया फिल्म पड़ोसन(1968) का है , "क्या जानूँ सजन" (कविता कृष्णमूर्ति)गाना लता जी का गाया फिल्म बहारों के सपने (1967) का है , "ग़ुम है किसीके प्यार में" (हरिहरन,कविता) द्वारा गाया गाना असल में रामपुर का लक्ष्मण (1972)लता-किशोर द्वारा गाया हुआ है , "तेरे बिना ज़िंदगी से" (हरिहरन, अलका) ये गाना भी आंधी - 1975 (किशोर-लता) से लिया गया है, वही "तुम बिन जाऊँ कहाँ" (हरिहरन) वाला गाना फिल्म-प्यार का मौसम (1969 ) से लिया गया जिसे रफ़ी और किशोर पहले ही गए चुके थे, "रात काली एक ख्वाब में आई" (शान,सानु) ये गीत फिल्म -बुड्ढा मिल गया(1971 ) किशोर का गाया हुआ था, वहीं "मेरे सामनेवाली खिड़की में"(शान,) ये गीत पहले ही मस्तमौले किशोर फिल्म पड़ोसन (1968) के लिए गए चुके थे, कुमार सानु का गाया "यादों की बारात निकली है " नामक गाना यादों की बारात फिल्म का का शीर्षक गीत किशोर और रफ़ी 1973 में ही गा चुके थे ,इस गाने को कौन भूल सकता है "ये जो मुहब्बत है" (हरिहरन, बाबुल सुप्रियो, अभिजीत )इस गाने को किशोर ,राजेश खन्ना के लिए 1971 में ही गा चुके थे .
इस तरह के प्रयोग पसंद किये जाते रहे पर जैसे ही हम रीमिक्स के नाम पर गानों में होने वाले अत्यधिक तबदीली की तरफ आकर्षित हुए गानों से सुर -लय- ताल के साथ मधुरता भी गायब हो गयी और हम शोर की तरफ आकर्षित होते चले गए -
याद कीजिये आशा भोंसले के गाए हुए गाने ‘दम मारो दम’ को जो असल में देव आनंद की 1971 में आई फ़िल्म - ‘दम मारो दम’का है ,इन दिनों इसका रीमिक्स वर्ज़न काफी चर्चा में है,फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ में कुछ पुराने गानों को नए अंदाज में पेश किया गया है ,इसी तरह फिल्म ‘मैं हूं ना’ में आर.डी बर्मन के गाने को रीमिक्स किया गया है ,'नौटंकी साला' में भी धक धक करने लगा (फिल्म -बेटा से ) और 'सो गया ये जहां' (फिल्म -तेजाब से )गाने शमिल किए गए हैं। 2006 में शाहरुख की आई डॉन फिल्म का गाना- खाइके पान बनारस वाला (उदित नारायण ),अमिताभ की डॉन (1978) में किशोर द्वारा गाये खाइके पान.. का रीमिक्स है ,मीका का गाया अपनी तो जैसे तैसे कट जाएगी ,असल में लावारिस(1981) फिल्म के किशोर का गाया गीत है जो 2010 में आई हॉउसफुल में रीमिक्स हुआ है ,फिल्म उपकार का प्रसिद्ध गाना -मेरे देश की धरती सोना उगले को भी फिल्म किसान के लिए रीमिक्स किया गया ,शान और सागरिका का एलबम 'रूप तेरा मस्ताना' और ' तन्हा दिल' रीमिक्स की काफी चर्चा रही.
कांटा लगा..., मेरी बेरी के बेर मत तोड़ो..., परदेसिया ये सच है पिया..., बिन तेरे सनम... जैसे गानों के रीमिक्स को कौन नहीं जानता ? तमाम विवादों के वावजूद ये गाने पसंद किये गये.
लता जी ने इस तरह के गाने को सुनने तक से मन कर दिया था, और ये भी कहा था हमने मेहनत करके जो कुछ भी अच्छा काम किया है उन्हें तो मत ख़राब कीजिये ,वे जिस रूप में हैं अच्छे हैं.
कुमार सानू तो यहाँ तक कहते हैं- संगीत से मेलोडी, सुर, लय-ताल आदि कहीं खो रहा है और उनकी जगह शोर ले रहा है।'
हालाँकि कॉपीराइट और रीमिक्स के मुद्दे पर दिल्ली हाई कोर्ट का कहना हैं - की अलग संगीतकारों ,गायकों ,कलाकारों ,बाद्ययन्त्रों के साथ नयी तकनीकों का प्रयोग कर साउंड रिकॉर्डिंग की इजाजत है. शायद इसी वजह से हम इससे भी आगे निकल कर डीजे और फ़िल्मी क्लब रीमिक्स के दौर में आ गए है फिर आइटम नंबर के तो क्या कहने ,इनमे अगर सुपर रीमिक्स का तड़का न मिले तो कमाई करोड़ों में कैसे होगी ? पर इस बदलाव में मधुर संगीत प्रेमी खुद को रीमिक्स बनाये भी तो कैसे ? रीमिक्स सुनते-सुनते हम खूद इतने रीमिक्स हो गए की अच्छे गानों का कबाड़ा करने के बाद भी मिक्स करने और सुनने की ही सोचते है पर अब मिक्स करने को बँचा ही क्या है ? अपनी मौलिकता से पहचाने जाने वाले लता ,रफ़ी ,किशोर ,मुकेश आदि की कड़ी में कोई दूसरा नाम नहीं जुड़ने वाला ?
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