जगजीत सिंह हिन्दी सिनेमा में पार्श्वगायक बनने का सपना लेकर घर से बिना किसी को बताए मुंबई भाग आए थे । तब दो वक्त की रोटी के लिए कॉलेज और पार्टियों में गाया करते थे। ये वो दौर था जब तलत महमूद, मोहम्मद रफ़ी , किशोर कुमार, मन्नाडे जैसे दिग्गज गायक लोगों की जुबां पर चढ़े हुये थे । इन महारथियों के दौर में दूसरे लोगों को पार्श्व गायन का मौक़ा मिलना बहुत ही मुश्किल था । हालांकि जगजीत सिंह हल्के शास्त्रीय धुनों पर आधारित अपने पहले एलबम ‘द अनफ़ॉरगेटेबल्स’ रिलीज कराने में कामयाब रहे । जगजीत ने इस एलबम की कामयाबी के बाद मुंबई में अपना फ़्लैट भी ख़रीद लिया था ।
1981 में आई फिल्म ‘प्रेमगीत’ और 1982 में प्रदर्शित फिल्म ‘अर्थ’ में जगजीत सिंह ने बतौर संगीतकार हिट धुनें तैयार कीं, फ़िल्म के सभी गाने लोगों की जुबां पर चढ़ गए । लेकिन इसके बाद फ़िल्म- लीला, ख़ुदाई, बिल्लू बादशाह, क़ानून की आवाज़, राही, ज्वाला, लौंग दा लश्कारा, रावण और सितम जैसे फिल्मों में भी संगीत दिया, पर सारी की सारी फिल्में असफल रहीं और उनके संगीत बेहद नाकामयाब रहे । इस तरह जगजीत सिंह ने बतौर संगीतकार फ़िल्मों में हिट संगीत देने के लिए काफी पापड़ बेले लेकिन वे अच्छे फ़िल्मी गाने रचने में विफल ही रहे। मायूस होकर उन्होने गायन पर अपना सम्पूर्ण ध्यान लगाना शुरू किया। क्योंकि इनकी गायिकी इनके ही संगीत पर भारी पड़ने लगी ।
एक गायक के रूप में जगजीत जी लोगों की दिल की गहराइयों में उतरते रहे । इनका- ‘होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो’, ‘ओ मां तुझे सलाम’, ‘‘चिट्ठी ना कोई संदेश’, ‘बड़ी नाज़ुक है ये मंज़िल’ , ‘ये तेरा घर, ये मेरा घर’ , ‘प्यार मुझसे जो किया तुमने’ , ‘होशवालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है’ ‘, ‘हाथ छुटे भी तो रिश्ते नहीं छूटा करते’ , ‘कोई फ़रयाद तेरे दिल में दबी हो जैसे’ ,‘तुम पास आ रहे हो’ या ‘मेरी आंखों ने चुना है तुझको दुनिया देखकर’ जैसे गीत बेहद हिट रहे।
ग़ज़लों को फ़िल्मी गानों की तरह गाये जाने की वजह से आमलोगों द्वारा इसे बहुत पसंद किया जाने लगा लेकिन ग़ज़ल की दुनिया में जिस शास्त्रीय शैली का निर्वाह बेग़म अख़्तर, कुन्दनलाल सहगल, तलत महमूद, मेहदी हसन आदि गायकों ने किया था उस परम्परा से हटकर परंपरागत गायकी के शौकीनों को जगजीत सिंह की ये शैली और प्रयोग पसंद नहीं आई । उनका आरोप था की जगजीत सिंह ने ग़ज़ल की मूल भावना और स्वभाव के साथ छेड़छाड़ की है। हालांकि जगजीत सिंह ने शब्दों और वाद्ययंत्रों से संबन्धित बदलाव जारी रखा। इस बीच उन्होने फ़िल्मी गानों का कवर वर्सन एलबम क्लोज़ टू माइ हार्ट निकाला लेकिन इसमे रफ़ी साहब का कोई गाना नहीं था। गौर करने वाली बात है की रफी साहब को ये अपना आदर्श मानते थे, लेकिन संघर्ष के दिनों में उनके ही बारे में तीखी टिप्पणी करके आलोचनाओ के शिकार भी हो चुके थे। पाकिस्तान द्वारा वीजा नही दिये जाने से नाराज जगजीत सिंह ने पाकिस्तानी गायकों पर बैन लगाने की मांग की थी। हालांकि बाद के दिनों में जब पाकिस्तान से बुलावा आया तो ये नाराजगी भी दूर हो गयी । बाद में पाकिस्तानी गजल गायक मेहंदी हसन को इलाज के लिए पैसों की मदद भी की।
गजल गायक गुलाम अली के साथ एक शो की तैयारी करते करते गजल के बादशाह जगजीत सिंह का 10 अक्टूबर 2011 सुबह 8 बजे मुंबई में देहांत हो गया ।
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