सुदेश भोंसले - दुनिया जिन्हें मशहूर गायक और मिमिक्री आर्टिस्ट के तौर पर जानती और पहचानती है, इसी लाजवाब प्रतिभा से प्रभावित होकर अमिताभ बच्चन ने खुद कहा था अब मेरे गाने मैं नहीं, सुदेश गाएगा।
उसी डबिंग आर्टिस्ट और उसके पेरेंट्स को शुरुआती दिनों में अहसास तक नहीं था सुदेश कभी इस क्षेत्र में आएंगे। इनके पिता 1960- 80 के दशक में मशहूर पेंटर रहे और एन आर भोसले आर्ट के नाम से फिल्मों के होर्डिंग्स और बैनर -पोस्टर बनाते रहे. ये वो दौर था जब हाथों से ही फिल्मों के पोस्टर डिजाइन किए जाते थे। एक बार सुदेश ने उत्सुकतावश पूछ लिया कि क्या वे कुछ स्केच बना सकते हैं? पिता के हां कहते ही पहली बार उन्होंने राजेश खन्ना और हेमा मालिनी का स्केच इतना हू - ब- हू बनाया कि सभी दंग रह गए। फिर तो पिता ने अपने स्टूडियो में ही उन्हें काम पर रख लिया, इस तरह 1974 से 1982 तक सुदेश अपने पिता को असिस्ट करते रहे। जिससे सबको यही लगने लगा कि आगे चलकर सुदेश इसी बिजनेस को संभालेंगे और पेंटिंग ही करेंगे।
इनकी मां और नानी क्लासिकल गायिका थीं, तो घर में सांगीतिक माहौल था, फिर रेडियो से अत्यधिक लगाव भी, इस तरह इन्हें कब गाने याद हो जाते हैं और जुबां पे चढ़ जाते पता ही नहीं चलता। खास बात यह होती कि ये जिस भी कलाकार के गाने गुनगुनाते उसी की आवाज में ढल जाते। कॉलेज के दिनों में दोस्तों ने इनके अलग-अलग अभिनेताओं की आवाजें निकालना और सिंगरों कि नकल करने की क्षमता को पहचान लिया और इनसे डायलॉग बोलने और गाने की फरमाइश करने लगे। उस वक्त के अन्य कोई मिमिक्री कलाकार अमिताभ बच्चन की आवाज नहीं निकाल पाता था और सुदेश, अमित जी की आवाज इतनी बखूबी निकालते कि पहचाना मुश्किल हो जाता। धीरे धीरे ये आसपास काफी फेमस हो गये। तब इन्होंने कई फिल्मी गानों की किताबें और सीडीज खरीदी और उन्हें रटना शुरू किया। इनकी मांग भिन्न-भिन्न शहरों और ऑर्केस्ट्रा ग्रुपों में होने लगी। साथ ही साथ ये नाटकों में अभिनय भी करने लगे। पर इनके पिता इन सब से अनजान थे। एक बार सुदेश ने अपने माता पिता को प्ले देखने के लिए आमंत्रित किया और जब तालियों की गड़गड़ाहट में सुदेश की वाहवाही सुनी तब जाकर पिता को पता चला कि उनका बेटा इन सब कलाओं में भी माहिर है। आगे चलकर मशहूर आर्केस्ट्रा ग्रुप melody makers ने इन्हे अपने साथ जोड़ लिया और ढेरों शो किए. इसी सिलसिले में किशोर कुमार के साथ इनके विदेशों में शो हुए और ये किशोर कुमार के चहेते बन गए। आशा भोसले के साथ भी कई सालों तक इनके शोज होते रहे। इन्होने कई साल सन्जीव कुमार और अनिल कपुर के लिये मिमिक्री आर्टिस्ट के तौर पर डबिन्ग भी की।
राहुल देव बर्मन ने इन्हें पहला ब्रेक 1986 में दिया पर अमिताभ बच्चन की फिल्म "हम" (1990) के गाने 'जुम्मा चुम्मा दे दे' ने ऐसी लोकप्रियता दी, की दूसरे अभिनेताओं पर फिल्माए जाने वाले गाने भी अमिताभ बच्चन की आवाज में रिकॉर्ड होने लगे. जैसे-गोविंदा का...शर्माना छोड़ डाल.. आजू बाजू मत, संजय दत्त का-हसीना मान जाएगी.. , जॉनी लीवर का- मिस्टर लोवा लोवा तेरी आंखों का जादू। यहां तक की जया बच्चन को सालों तक विश्वास नहीं हुआ कि जुम्मा चुम्मा दे दे… जैसे गाने सुदेश ने गाए हैं।
माहिया ..सेशावा शावा, रूप है तेरा सोना सोना, मेरी मखना.., बड़े मियां बड़े मियां..., सोनी तेरी चाल सोनी वे...,नाना नाना नारे.. गाने ने इन्हे अमिताभ की आवाज के रूप में स्थापित कर दिया, हालांकि अजूबा फिल्म में अमिताभ के लिए ये काफी पहले ही - या अली या अली..मेरा नाम है अली.. और अन्य दो गाने गा चुके थे। उसी वक्त अमिताभ ने उनसे मिलते हुए यह कहा था कि हमारी और आपकी आवाज काफी मिलती है, मुझे तो पता ही नहीं चला कि मैंने ये गाने कब गाए। तब सुदेश ने उन्हीं की आवाज में उनका अभिवादन किया । फिर अमिताभ के कहने पर उन्होंने उनकी जवानी से लेकर उस वक्त तक की बदलती आवाज में इतने डायलॉग सुनाएं कि अमिताभ बिल्कुल सन्न रह गए, और काफी देर तक कुछ नहीं बोल पाए। फिर उठकर गले लगा लिया।
शनिवार, 7 नवंबर 2020
किस गीतकार के गीतों से झुंझला जाते थे संगीतकार आर डी बर्मन?
Posted by zindgi.com | 2:07 am Categories:
दिल्ली से बम्बई आने के बाद शुरुआती दिनों में गुलजार ने एक गैरेज में मैकेनिक के तौर पर काम किया और कई शायरों-साहित्यकारों-नाटककारों के संपर्क में आए । इन सबकी मदद से वे गीतकार शैलेन्द्र और संगीतकार सचिनदेव बर्मन तक पहुंचने में कामयाब रहे। उन दिनों सचिन दा फिल्म ‘बंदिनी’ के गीतों की धुन तैयार कर रहे थे। शैलेन्द्र की सलाह पर पर सचिन दा ने गुलज़ार को एक गीत लिखने की जिम्मेवारी दी। ये गुलजार के लिए एक ट्रायल जैसा था। गुलज़ार ने हफ्ते भर के भीतर ही गीत लिखकर दे दिया- ‘मोरा गोरा अंग लई ले, मोहे श्याम रंग दई दे।‘ सचिन दा को गीत बेहद पसंद आया। उन्होंने अपनी आवाज में इसे गाकर निर्माता-निर्देशक- बिमल राय को सुनाय और गीत ओके हो गया। गुलज़ार के इसी बांग्ला ज्ञान को समझते हुए बिमल राय उन्हें अपने होम प्रोडक्शन में रिजर्व गीतकार के तौर पर रखना चाहा, लेकिन गुलज़ार को केवल गीतकार होकर रह जाना मंजूर नहीं था।
तभी तो एक तरफ- 'एक मोड़ से आते हैं कुछ सुस्त कदम रस्ते', तो दूसरी तरफ़ 'कजरारे-कजरारे' और 'नाम गुम जाएगा चेहरा ये बदल जाएगा' तो दूसरी तरफ 'गोली मार भेजे में, ये भेजा शोर करता है'. जैसे गाने लिखने वाले गुलजार ने हर बार कुछ नवीन और विशिष्ट हिंदी - उर्दू शब्दों के जरिए अपना जादू बरकरार रखा। जिया जले, जाँ जले और बीड़ी जलइले जैसे गानों के मुरीद गीतकार जावेद अख्तर कहते हैं- गुलज़ार साहेब की ख़ूबी ये है कि पूछना नहीं पड़ता कि ये उनका गाना है. शब्दों से ही पता चल जाता है कि ये उन्हीं का लिखा गाना है।
एस डी बर्मन के बाद उनके बेटे आर डी बर्मन(पंचम दा) के लिए भी गुलजार का गीत लेखन जारी रहा। 60 से लेकर 90 के दशक तक आर डी बर्मन सक्रिय रहे. इस दौर के जितने भी गीतकार हुए लगभग सभी के साथ आर डी बर्मन ने काम किया लेकिन इनमें से गुलजार ऐसे गीतकार थे जिनके साथ पचंम दा को सबसे अधिक मजा आता था, क्योंकि इनके गाने पंचम दा के लिए हमेशा चुनौतीपूर्ण होते थे. एक बार गुलजार फिल्म 'इजाज़त' का गीत- "मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा हैं, सावन के कुछ भीगे भीगे दिन रखे हैं और मेरे एक ख़त में लिपटी रात पडी हैं ,वो रात बुझा दो, मेरा वो सामान लौटा दो… लिखकर पंचम दा के पास पहुंचे और कहा कि पंचम इस गीत की धुन बनाएं. पूरा गीत पढ़ने के बाद पंचम दा ने गुलजार की तरफ देखा और खीझते हुए कहा कि यह क्या बात हुई - ''कल को आप न्यूज पेपर की हेडिंग लेकर आ जाएंगे, और कहेंगे कि धुन बना दो " ऐसा नहीं होता है। हालांकि बाद में आरडी बर्मन ने इस गीत की धुन बनाई और इस गीत के लिए आशा भोंसले को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला. आर डी बर्मन और गुलजार निजी जीवन में गहरे मित्र रहे।
कुछ गुलजार रस के गाने :-
#सावन के कुछ भीगे-भीगे दिन रखे हैं और मेरे एक ख़त में लिपटी रात पड़ी है (फिल्म- इजाजत )
#नीली नदी के परे, गीला सा चांद खिल गया (फिल्म- लिबास )
#टूटी हुई चूड़ियों से जोडूं ये कलाई मैं यारा सिली सिली..(फिल्म -लेकिन )
#जनम से बंजारा हूं बंधु जनम-जनम बंजारा / कहीं कोई घर न घात न अंगनारा– (राहगीर)
#गोली मार भेजे में / भेजा शोर करता है’ (सत्या)
#छोटे-छोटे शहरों से / खाली बोर दोपहरों से / हम तो झोला उठा के चले(बंटी और बबली)
#जीने की वजह तो कोई नहीं / मरने का बहाना ढूंढ़ता है / एक अकेला इस शहर में – घरौंदा
#गंगा आए कहां से, गंगा जाए कहां रे / लहराए पानी में जैसे, धूप-छांव रे (काबुलीवाला)
#भेज कहार पियाजी बुला लो / कोई रात-रात जागे / डोली पड़ी-पड़ी ड्योढ़ी में / अर्थी जैसी लागे (माचिस)
#केसरिया बालमा मोहे बावरी बोलें लोग / प्रीत को देखें नगरी वाले पीड़ न देखें लोग / बावरी बोलें लोग (लेकिन)
#जब भी थामा है तेरा हाथ तो देखा है / लोग कहते हैं कि बस हाथ की रेखा है
#हमने देखा है दो तकरीरों को जुड़ते हुए / आजकल पांव जमीं पर नहीं पड़ते मेरे - (घर)
#होंठ पर लिए हुए दिल की बात हम / जागते रहेंगे और कितनी रात हम
#मुख्तसर सी बात है तुमसे प्यार है / तुम्हारा इंतजार है –( ख़ामोशी)
#फिर से अइयो बदरा बिदेसी / तेरे पंखों पे मोती जडूंगी
भर के जाइयो हमारी तलैया / मैं तलैया के किनारे मिलूंगी - (नमकीन)
#आनेवाला पल जानेवाला है / हो सके तो इसमें /जिंदगी बिता दो / पल जो यह जाने वाला है – (गोलमाल)
#रोज अकेली आए / रोज अकेली जाए / चांद कटोरा लिए भिखारन रात (मेरे अपने)
# जिहाल-ए -मिस्कीन मकुन बा रंजिश,बहाल-ए -हिजरा बेचारा दिल है-
#मोरा गोरा अंग लई ले’मोहे श्याम रंग दई दे।‘ (बंदिनी)
गुलशन कुमार जीवित नहीं हैं इसके बावजूद उनकी कंपनी “गुलशन कुमार प्रेजेंट्स” क्यों लिखती है?
Posted by zindgi.com | 2:01 am Categories:हालांकि भूषण कुमार को जब अहसास हो गया की उनके पिता ने कंपनी को जिस मुकाम पे ला खड़ा किया है उसे और शिखर तक ले जाने के लिए और उनके अधूरे सपनों को साकार करने के लिए उन्हे कुछ तो करना ही होगा। बस, उन्होने ठान लिया की किसी भी सूरत में हार नहीं माननी है। तब से भूषण में गज़ब की तब्दीली देखी गयी, अचानक से उनमे गंभीरता और जिम्मेवारी के भाव झलकने लगे। पढ़ाई को बीच में ही छोडकर उन्होंने पिता की कंपनी ज्वाइन कर ली और पिता के मैनेजर को बुलाकर निवेदन किया- “आपको पापा के साथ काम करने का गहरा अनुभव है,आप कंपनी छोडकर कहीं नहीं जाएँ, मुझे मार्गदर्शित करें, कंपनी से जुड़े सभी लोग एक परिवार की तरह हैं ,हम सब मिलकर पापा के अधूरे सपनों को पूरा करेंगे" उसके बाद से भूषण कुमार ने कंपनी के लिए जी-जान लगा दी। हालांकि अब भी बहुतों को इनपर विश्वास नहीं था, और उन्होने कंपनी को अलबिदा तक कह दिया । उनमे से कई तो ऐसे भी थे जिन्होने गुलशन कुमार के साथ ढेरों काम किया था, और कुछ ऐसे भी जिन्हें गुलशन कुमार ने पहला मौका दिया था।
आज म्यूजिक इंडस्ट्रीज में टी-सीरीज का प्रभाव 85 प्रतिशत हो गया है, और इनका बिजनेस 25 से अधिक देशों में फैल चुका है। यूट्यूब पर इनका चैनल आज भी सबसे ज्यादा देखा जाता है, साथ ही कोई ऐसा म्यूजिक अवार्ड फंक्शन नहीं हो जिसमे टी-सीरीज की सहभागिता नहीं दिखे।
इन सब उपलब्धियों के पीछे भूषण कुमार का ही योगदान है। पर भूषण आज भी इसके लिए अपने पिता को श्रेय देते हैं, और उनकी उपस्थिती महसूस करते हैं। उनका मानना है की कंपनी के लिए वो कुछ नहीं करते सबकुछ उनके पिता करते हैं, वे तो जरिया मात्र हैं। इसलिए आज भी टी-सीरीज की किसी भी फिल्म या संगीत में “गुलशन कुमार प्रेजेंट्स” ही लिख कर आता है। भूषण कुमार कहते हैं ये परम्परा सदियों तक जारी रहेगी, भले ही कंपनी कोई भी चलाये, लेकिन नाम हमेशा गुलशन कुमार का ही आएगा।
अरबों की संपत्ति के मालिक “राजेश खन्ना" ने अपनी ही बीवी को क्यों दिखा दिया था ठेंगा?
Posted by zindgi.com | 1:58 am Categories:
राजेश खन्ना ने साल 1969 में फिल्म -"आराधना" की सफलता से 1971 तक लगातार 15 हिट फिल्मों का जो रिकार्ड बनाया उसे आज तक कोई तोड़ नहीं पाया है। फिल्म "आखिरी खत" से अपने करिअर की शुरुआत करने वाले सुपर स्टार राजेश खन्ना की लोकप्रियता का ये आलम रहा कि " ऊपर आका और नीचे काका" की ही चर्चा बॉलीवुड में होती रही और "काका" उस दौर में अपनी फिल्मों की बदौलत अरबों संपत्ति के मालिक बन गए।
फिल्म बॉबी के सेट पर राजेश खन्ना और डिंपल की मुलाकात हुई थी, डिंपल राजेश खन्ना की बहुत बडी फैन थीं, राजेश खन्ना को डिंपल कपाड़िया इतनी पसंद आईं कि मात्र 4 दिनों में दोनों शादी के लिए तैयार हो गए। उस वक्त डिंपल मात्र साढ़े पंद्रह साल की थीं और राजेश 30 साल के । राजेश खन्ना के सपनों में खोई डिंपल के पास उन्हें मना करने का कोई भी कारण नहीं था। पर राजेश खन्ना ने एक शर्त जरूर रखी थी, की शादी के बाद डिंपल फिल्मों से दूर हो जाएंगी।
लेकिन राजेश से शादी के बाद जब डिम्पल की 'बॉबी' रिलीज हुई तो इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। डिंपल रातों-रात सुपरस्टार बन गईं। तब इनका फिल्मों के प्रति फिर से मोह जग गया। डिम्पल काम करना चाहती थीं, संभव है कि यही से दोनों की अनबन की शुरुआत हुई।
इधर कई फ़्लॉप फ़िल्मों के बाद राजेश खन्ना ने फ़िल्म 'सौतन' में कमबैक किया। फ़िल्म की शूटिंग के दौरान ही राजेश खन्ना और टीना मुनीम एक दूसरे के करीब आ गए और डिम्पल कपाड़िया के लिए उनका गुस्सा बढ़ता गया।
एक बार डिम्पल और राजेश शूटिंग के सिलसिले में मॉरिशस में थे. उन्हीं दिनों कई बार डिंपल ने अपनी आँखों से देखा कि राजेश टीना मुनीम के रोमांस में सभी हदों को पार कर रहे हैं ,तो वे बिना किसी को कुछ बताए मुंबई वापस आ आईं। आते आते ड्रेसिंग टेबल के शीशे पर डिंपल ने कुछ लिख छोड़ा था 'आई लव यू, गुड बाय"। गुस्से में इतनी बड़ी बात को राजेश खन्ना ने भी हल्के में लिया और पहले की तरह टीना मुनीम के साथ शूटिंग करते रहे. हालांकि उसके बाद डिम्पल उनके घर "आशीर्वाद" में कभी नहीं लौटीं.
डिंपल से अलग हो जाने के बावजूद राजेश खन्ना ने उन्हे कभी तलाक तो नहीं दिया पर अपने ईगो स्वभाव के चलते उन्होंने अपनी संपत्ति से बेदखल जरूर कर दिया । इस मामले पर हाईकोर्ट तक बहसें हुईं। बेटी ट्विंकल और दामाद अक्षय कुमार , खास दोस्तों और फैमिली डॉक्टर दिलीप के सामने ‘काका’ की वसीयत पढ़ी गई जिसमें यह सामने आया कि डिंपल को संपत्ति का हिस्सा नहीं मिलेगा. राजेश खन्ना करीब एक हजार करोड़ की संपत्ति बेटी ट्विंकल खन्ना व रिंकी खन्ना के नाम कर गए थे।
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जाते जाते एक बात और राजेश खन्ना और उनकी बेटी ट्विंकल खन्ना का जन्म दिन एक ही दिन आता है 29 दिसंबर।
एकबार गायक मुकेश साईं बाबा के दर्शन करने शिर्डी गए । दर्शन और पूजन के बाद उनकी इच्छा आस-पास के क्षेत्रों में घूमने की हुई । थोड़ी ही दूर खड़े एक रिक्शे वाले से उन्होने पूछा की क्या वह उन्हे आस-पास के प्रसिद्ध जगहों पर घूमा सकता है ? रिक्शा वाला फौरन तैयार होते हुये बोला, चलिये ! मुकेश रिक्शे पर बैठ गए । रिक्शा चालक मुकेश का बहुत बड़ा फैन था । हालांकि उसे ये नहीं पता था की उसके रिक्शे पर जो व्यक्ति बैठा है वो कालजयी गायक मुकेश हैं । आदतन उसने एक मुकेश का गाना" गाए जा गीत मिलन के, तू अपनी लगन के, सजन घर जाना है" गुनगुनाने लगा। उसे यूं गुनगुनाते हुए सुनकर मुकेश के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई। मुस्कुराते हुए ही उन्होंने रिक्शेवाले से कहा- भाई यह किसके गाने गा रहे हो? रिक्शेवाले ने जवाब दिया- आपको मालूम नहीं ? यह मुकेश जी का गाया गाना है। मुकेश भी आनंद लेने के मूड में थे तो उन्होंने रिक्शेवाले को छेड़ते हुए कहा " नाम तो सुना है, पर इसकी आवाज में कोई दम नहीं, बहुत बेकार गाता है। सुनाने हैं तो किसी और के गाने सुनाओ। ऐसा सुनते ही रिक्शावाला नाराजगी से गुस्से में आकर बोला- आप मुकेश जी को नहीं जानते कोई बात नहीं लेकिन उनकी गायकी के बारे में बुरा बोलने का आपको कोई हक नहीं। रिक्शे को सड़क के किनारे लगा कर वहीं रुक गया। तब मुकेश ने उससे माफी मांगते हुए कहा माफ कर दो गलती हो गई, छोड़ो इस बात को, चलो मुझे घुमाने ले चलो। इस पर रिक्शेवाले ने कहा- नहीं मैं आपको नहीं घुमा सकता, आप उतर जाइए और कोई और रिक्शा कर लीजिए। अंततः मुकेश जी को अपना परिचय देना पड़ा और गाना गाकर स्वयं को मुकेश साबित करना पड़ा । तब तो रिक्शेवाले की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, दिन भर वह मुकेश जी को घुमाता रहा और मुकेश जी उसके रिक्शे पर बैठे-बैठे उसकी फरमाइश के सभी गाने सुनाते रहे। जाते जाते मुकेश जी ने उसे एक रिक्शा उपहार स्वरूप भी दिया।
60 से 70 दशक के शीर्ष गायक "मुकेश चंद माथुर" अभिनेता बनना चाहते थे.
अभिनेता रजनीकान्त ने क्यों नहीं लौटाए भीख में मिले हुये रुपए?
Posted by zindgi.com | 1:54 am Categories:
रजनीकान्त बेहद धार्मिक और अध्यात्मिक व्यक्ति हैं. उनका प्रकृति प्रेम भी जग जाहीर है। उनका मानना है कि अध्यात्मवाद पैसा, नाम और प्रसिद्धि सबसे बढ़कर है क्योंकि अध्यात्मवाद से शक्ति मिलती है और शक्ति से उन्हे खाश लगाव है." इसलिए सुटिंग से वक्त निकाल कर रजनीकांत नियमित तौर पर हिमालय के सफर पर जाते रहते हैं. उनके लिए हिमालय दिव्य रहस्यों का भंडार है और उन्हे ताजगी से भर देता है .
घटना 2007 में आई फिल्म “शिवाजी” द बॉस के समय की है। अपनी इस फिल्म की अपार सफलता से रजनीकांत काफी खुश हुए और मंदिर जाकर पूजा करने की इक्छा जाहीर की । उनकी टीम ने उन्हें सुरक्षा संबंधी परेशानी से बचने के लिए वेश बदल कर मंदिर जाने की सलाह दी । निर्णय लिया गया की रजनी साहब को साधारण कपड़ों में बूढ़े आदमी के वेश में मंदिर भेजा जायेगा, जिससे कि उन्हें कोई पहचान नहीं सके। मेकअप आर्टिस्ट ने बड़ी खूबसूरती के साथ उन्हें एक बूढे कमजोर आदमी का रुप दिया था। इसके बाद रजनीकांत अपने कुछ साथियों के साथ मंदिर पहुंचे। जब रजनीकांत मंदिर पहुंचे तो उनके बदन पर साधारण कप़डे थे और वह किसी वृद्ध व्यक्ति की तरह ही धीरे-धीरे मंदिर की सीढियां चढ रहे थे। मंदिर से निकलते वक्त, मंदिर परिसर में ही आराम करने उदेश्य से बैठे हुये उन्हे थोड़ी ही देर हुई थी की इतने में एक महिला वहां से गुज़री और उन्हें भिखारी समझ बैठी । चूंकि रजनीकान्त बेहद साधारण और भिखारी वाले वेश में थे तो स्वाभाविक है कोई भी धोखा खा सकता था। महिला ने उन्हे 10 रुपए थमा दिये । रजनीकान्त पहले तो थोड़े सकपकाये पर महिला की मनोदशा भाँपते हुये सहर्ष ही रुपए ले लिया । जब रजनीकान्त मंदिर से बाहर जाने के लिए अपनी कार में बैठ रहे थे, तब उस औरत ने उन्हें दोबारा देख लिया। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। वह भागते हुये उनके पास गयी और ध्यान से देखने के बाद उन्हे पहचान गयी। माफी मांगते हुये उसने दिये हुये रुपए वापस करने का अनुरोध किया । रजनीकान्त ने हांथ जोड़ लिया और बोले की वो भी एक साधारण आदमी हैं कोई सुपरस्टार नहीं. आपके दिये हुए दस रुपए मेरे लिए आशीर्वाद है।
भारतीय सिनेमा के 'शोमैन' राज कपूर शुरुआती दिनों में संगीतकार बनना चाहते थे, मगर बन गए प्रोड्यूसर, डायरेक्टर और एक्टर। इनका असल नाम रणबीर कपूर था।
इस सितारे ने मात्र 63 वर्ष की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। भले ही उनकी मौत का कारण अस्थमा बीमारी रही, मगर जिन परिस्थितियों में उनका निधन हुआ उससे तो यही कहा जा सकता है कि उनकी मौत समय से पहले ही हो गयी। या दूसरी तरफ ये कहें की इनकी मौत के पीछे केंद्र सरकार का प्रोटोकॉल भी जिम्मेदार है तो गलत नहीं होगा ।
फिल्म 'हीना' की शूटिंग के दिनों में राज साहब को अस्थमा बीमारी ने बुरी तरह से घेर लिया था, उन्हे ऑक्सीज़न सिलिन्डर हमेशा साथ रखना पड़ता था, उसी बीच केंद्र सरकार ने उन्हे 'दादासाहब फालके पुरस्कार ' से सम्मानित करने के लिए दिल्ली आने का आमंत्रण भेज दिया। इस अवार्ड को लेने के लिए राज कपूर सपरिवार दिल्ली पधारे । हालांकि यहाँ आने के बाद उनकी बीमारी ने और अधिक जोर पकड़ लिया । अवार्ड फंक्शन दिल्ली के 'सीरी फोर्ट ऑडिटोरियम' में होनी थी, सुरक्षा कारणों से इस अवार्ड सेरेमेनी में राज कपूर को ऑक्सीजन सिलिंडर ले जाने की परमिशन नहीं मिली। दर्शकों के बीच बैठे हुये उन्हें काफी समय से अच्छा फिल नहीं हो रहा था , राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण के भाषण के बीच जब अवार्ड लेने के लिए उनके नाम की घोषणा हुई, तभी उन्हें सीने में तेज दर्द शुरू हुआ. उन्हें अस्थमा का दौरा पड़ा था, पूरा शरीर पसीने से तरबतर हो रहा था, और वे जोर जोर से हांफ रहे थे, ये देखकर राष्ट्रपति आर. वेंकेटरमन ने सभी प्रोटोकॉल तोड़कर स्टेज से नीचे उतर कर राज साहब को “दादा साहब फाल्के अवार्ड” से सम्मानित तो कर दिया, मगर तब तक काफी देर हो गयी और उनकी हालत बेहद खराब हो गयी ,आनन-फानन में उन्हें ऑक्सीजन सिलेंडर का मास्क और इंजेक्शन लगाकर एम्स हॉस्पिटल ले जाया गया, जहां पहुंचकर वे कोमा में चले गए , हॉस्पिटल में 1 महीने के इलाज के बावजूद इन्हें बचाया नहीं जा सका और आखिरकार 2 जून 1988 के दिन बॉलीवुड के शोमैन राज कपूर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
**एक दिलचस्प बात- राज कपूर “आर के स्टूडियो में अपने मेकअप रूम को किसी और को इस्तेमाल नहीं करने देते थे, सिर्फ देव आनंद को ही इसकी इजाजत थी ।
***अपनी फिल्मों के लिए सफ़ेद साड़ी को लकी मानने वाले राज कपूर अपनी हर फिल्म में हीरोइन को सफेद साड़ी जरूर पहनाते थे।
***राज कपूर को फर्श पर सोने की आदत थी, फलस्वरूप वे जिस किसी होटल में ठहरते होटल का गद्दा खींचकर जमीन पर बिछा लेते थे, इसके लिए उन्हें कई बार जुर्माना भी भरना पड़ा।
महमूद इतने सक्षम कलाकार थे की कोई भी सीन करने से पहले कोई रिहर्सल नहीं करते थे लेकिन जब सीन खत्म होता तो उनके लिए तालियाँ जरूर बजतीं थीं। यहीं वजह रही की उस जमाने के सभी बड़े एक्टरों के साथ फिल्मी पोस्टरों पर इनकी तस्वीर जरूर हुआ करती थी। जिससे दर्शक खींचे चले आते थे और फिल्म सफल हो जाती थी।
दूसरी तरफ किशोर कुमार के हरफनमौला अंदाज के कायल थे महमूद । किशोर कुमार की एक्टिंग ने उन्हे इतना प्रभावित किया था कि किशोर को ध्यान में रखकर उन्होंने फिल्म-“पड़ोसन” तथा “साधू और शैतान” का निर्माण किया। ये अलग बात है की जब किशोर ने फिल्मों का निर्माण किया तो कभी महमूद को कोई रोल ऑफर नहीं किया।
एक बार साथी एक्टर "बीरबल" ने मज़ाक में महमूद से पूछा था की क्या कोई ऐसा एक्टर है जिसकी एक्टिंग से आपको डर लगता हो ? तो इसपर महमूद साहब ने गंभीर होते हुये कहा था की मैं लगभग सभी अभिनेताओं की सीमाएं जानता हूँ लेकिन “किशोर कुमार” के बारे में कुछ पता ही नहीं चलता की वो अपने किरदार के साथ कब क्या कर जाएँ । एक किशोर की एक्टिंग ही है जो मुझे डराती है।
गायिकी से जुड़ा एक दिलचस्प वाक्या- फिल्म पड़ोसन के एक गाने- “
एक चतुर नार करके सिंगार” से जुड़ा है। गाने में पड़ोसी युवक को गीत-संगीत मे हराने के लिए एक्ट्रेस "सायरा बानो" अपने संगीत गुरु महमूद को लातीं हैं, तब महमूद और सुनील दत्त (जिनके लिए पीछे से किशोर कुमार गा रहे होते हैं) के बीच में टक्कर होती है, जिसमें महमूद हार जाते हैं। इसके लिए जब महमूद ने गायक “मना डे” से संपर्क किया और बताया की गानें मे आपको किशोर कुमार से हार जाना है तो वे भड़क गए और बोले की कौन सा ऐसा सुर है जिसे मैं नहीं गा सकता और किशोर मुझसे बेहतर गा लेगा। तब महमूद ने अनुरोध करते हुये कहा की इसे आप निजी तौर पर नहीं लें और फिल्म की जरूरत को समझे। खैर, काफी मिन्नतों के बाद मन्ना डे गाने के लिए तैयार तो हो गए पर एक शर्त रख दी कि गाने में जहां-जहां भी सुर गड़बड़ होने वाली जगह आएगी वहां वे नहीं गाएंगे, इस तरह गाने में जहां-जहां भी सुर लड़खड़ाते हैं, या अटकते हैं वहां पर महमूद की आवाज रखीं गई है। यहां बता देना जरूरी है कि यह वही गाना है जिसे फिल्म -पड़ोसन से लगभग 27 साल पहले फिल्म "झूला" के लिए अशोक कुमार की आवाज में रिकॉर्ड किया गया था और उन्हीं पर फिल्माया भी गया था। तभी किशोर कुमार ने सोच लिया था कि इस गाने को दोबारा कभी ना कभी किसी फिल्म में इस्तेमाल जरूर करेंगे, बस पड़ोसन फिल्म में उन्हें ये मौका मिल गया, और एक बार फिर किशोर कुमार ने महमूद की घबराहट बढ़ा दी थी। (वही किशोर कुमार के मुताबिक वे महमूद के सामने कुछ भी नहीं थे)
ओरिजिनल सॉन्ग यहां से सुन सकते हैं :
अभिनेता अशोक कुमार अपने जन्मदिन को सबसे मनहूस दिन क्यों मानते थे?
Posted by zindgi.com | 1:37 am Categories:
बॉलीवुड के दादामुनि अभिनेता अशोक कुमार का जन्म 13 अक्टूबर 1911 को भागलपुर (Bengal presidency, Present-day Bihar) में हुआ था। आम तौर पर फिल्मों में सिगार लिए बुजुर्ग किरदार में नजर आने वाले दादामुनि तकरीबन 60 वर्षों तक फिल्म इंडस्ट्री के साथ लोगों के दिलो-दिमाग में छाए रहे । उनकी हार्दिक इच्छा रहती थी कि उनके भाई किशोर कुमार उन्हीं की तरह सफल अभिनेता बनें। जबकि किशोर कुमार कभी अभिनेता नहीं बनना चाहते थे। हालांकि के एल सहगल उनके सबसे पसंदीदा अभिनेता और गायक थे जिनकी नकल करना और उनके जैसा बनना उन्हें बेहद पसंद था। बड़े भाई के समझाने के बाद किशोर कुमार फिल्मों में काम करने को राजी तो हो गए पर उनका मन नहीं लगता था, इस चक्कर में उन्हें सिंगिंग का भी कोई मौका नहीं मिल रहा था। फलस्वरुप आरंभिक दिनों में उन्होंने जो भी फिल्में की सब फ्लॉप रहीं। फिल्म भाई भाई में किशोर कुमार और अशोक कुमार ने एक साथ काम किया।
13 अक्टूबर 1987 को किशोर कुमार ने अपने बड़े भाई के जन्मदिन पर एक शानदार पार्टी रखी और उन्हें फोन पर बताया कि वे उनके जन्मदिन पर उन्हे खास तोहफा देना चाहते हैं। पर किस्मत को कुछ और मंजूर था, तमाम नामचीन सितारे पार्टी में पहुंच गए, पर जिसने पार्टी दी थी वहीं नहीं आया। ये वहीं दिन था जब आज से 33 साल पहले किशोर कुमार का 58 साल की आयु में निधन हो गया था। उस दिन अशोक कुमार का 76वां जन्मदिन था। अभी पत्नी के निधन के गम से अशोक कुमार उबर भी नहीं पाए थे कि किशोर कुमार की मौत हो गई । तकरीबन 1 साल पहले ही अशोक कुमार की पत्नी का देहांत हो चुका था अब छोटे भाई की आकस्मिक निधन ने उन्हें तोड़ कर रख दिया, । अशोक कुमार ने फिर कभी अपना जन्मदिन नहीं मनाया।
## इनकम टैक्स से बचने और घाटा दिखाने के लिए किशोर भाइयों ने "चलती का नाम गाड़ी" और "बढ़ती का नाम दाढ़ी" फिल्में बनाई।
## एसडी बर्मन के लिए 112 गाने गानेवाले वाले कुमार को हॉलीवुड की फिल्में देखना बेहद पसंद था
## किशोर कुमार ने पहला गाना " मरने की दुआएं क्यों मांगू " को सहगल के अंदाज में ही रिकॉर्ड किया, जिसे फिल्म जिद्दी में देवानंद पर फिल्माया गया.
## "दूध जलेबी खाएंगे खंडवा में बस जाएंगे" ऐसा अक्सर कहने वाले किशोर कुमार यह सपना अधूरा ही रह गया. पर उनकी आखिरी इच्छा के अनुसार उनका अंतिम संस्कार खंडवा में ही किया गया
## फिल्म हाफ टिकट का एक गाना" आके सीधी लगी जैसे दिल पर कटरिया.. को सलिल चौधरी लता मंगेशकर के साथ रिकॉर्ड करना चाहते थे पर लता शहर से बाहर थीं, तब किशोर ने पुरुष और महिला दोनों की आवाज में यह गाना गाया।
## मधुबाला से विवाह करने के लिए किशोर ने अपना धर्म बदल कर करीम अब्दुल नाम रख लिया था।
## इससे पहले भी कई बार किशोर कुमार ने अशोक कुमार तक अपनी मौत की झूठी खबरें भेज कर रुलाया था।
राजेश खन्ना के साथ दामाद अक्षय कुमार ने "अछूत" सा व्यवहार क्यों किया?
Posted by zindgi.com | 1:36 am Categories:
29 दिसम्बर 1942 को अमृतसर में जन्मे राजेश खन्ना की फिल्मी दुनिया में प्रवेश एक टैलेंट हंट के जरिये हुयी थी। ।प्यार से लोग जिनहे “काका” कहकर बुलाते थे,असली नाम जतिन अरोरा था । यूं तो फिल्म “आखिरी खत” से ही उनके एक्टिंग की शुरुआत हो चुकी थी लेकिन उन्हे स्टार बनाने का काम फिल्म- “आराधना” ने किया। जबकि 1969-70 और बाद की आने वाली तमाम फिल्मों ने उन्हे बॉलीवुड का पहला सुपर स्टार बना दिया। 1969-72 के बीच उन्होने लगातार 15 सुपरहिट फ़िल्में- आराधना, इत्त्फ़ाक़, दो रास्ते, बंधन, डोली, सफ़र, खामोशी, कटी पतंग, आन मिलो सजना, द ट्रैन, आनन्द, सच्चा झूठा, दुश्मन, महबूब की मेंहदी, हाथी मेरे साथी, दीं । उस दौर में राजेश खन्ना फिल्मों की सफलता की गारंटी बन गए थे।
1973 में राजेश खन्ना ने अचानक डिम्पल कपाड़िया से विवाह कर लिया, जबकि उस वक्त उनका अफेयर “अंजु महेंद्रु” से चल रहा था, अंजु उन्हे फिल्मों में आने के पहले से जानती थीं और संघर्ष के दिनों से ही उनके साथ रहती थीं । फिल्म - “बॉबी” की अपार सफलता और फिल्मी कैरियर की दीवानगी ने डिम्पल और राजेश के वैवाहिक जीवन में दरार पैदा की, पति-पत्नी दोनों 1984 में अलग हो गये। उसके बाद अभिनेत्री टीना मुनीम [1] के साथ इनका रोमांस उनके विदेश चले जाने तक चला ।
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1975 के आसपास आने वाली एक्शन फिल्मों ने अपनी जगह बनानी शुरू कर दी थी, अमिताभ बच्चन जैसे कई दूसरे एक्टर की फिल्में हिट होने लगीं । रोमांटिक फिल्में असफल होने लगीं । दौर और ट्रेंड बदल रहा था । जिन टॉप निर्माताओं के लिए राजेश खन्ना रीजर्व रहे उन्होने शर्त के मुताबिक दूसरे लोगों के साथ काम नहीं करने दिया और इस चक्कर में कई हिट फिल्में इनके हाथ से जाती रहीं । वर्षों तक सियासत में मसगुल रहने के बाद वहाँ से भी मोह भंग हो गया । अब तक राजेश खन्ना बड़े पर्दे और राजनीति दोनों से गायब हो चुके थे ।
आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय हो गयी थी की डेढ़ करोड़ रुपए की जो देनदारी आयकर विभाग ने उनके ऊपर गिराई थी उसे वे चुका भी नहीं पा रहे थे, जिस “आशीर्वाद” बंगले से राजेश खन्ना ने सफलता की सीढ़िया चढ़ीं थीं, उसे टैक्स नहीं चुका पाने के कारण “सील” कर दिया गया था, तब 2001 से 2008 तक उनके पास रहने के लिए उनका अपना बंगला तक नहीं था, मजबूरी में वे अपने ऑफिस में रहा करते थे । कुछ वक्त किराए के मकान में भी रहे । पत्नी डिम्पल, दोनों बेटियाँ और दामाद जैसे काफी पैसे वाले लोगों के रहते हुये भी डेढ़ करोड़ का टैक्स नही चुकाया जाना सोचने पर मजबूर करता है। एक समय में अपने स्टारडम से सूरज को भी मात देने और हमेशा फैंस से घिरे रहने वाले राजेश खन्ना बिल्कुल अकेले पड़ गए थे। बॉलीवुड में बिल्कुल काम नहीं मिलने की वजह से ही वे “वफा” जैसी फिल्म करने पर मजबूर रहे। शाहरुख खान, सलमान खान या अक्षय कुमार हों सभी हमेशा उन्हे सुपरस्टार मानते रहे पर किसी ने कोई काम नही दिया । यहाँ तक की बुढ़ापे वाले रोल भी। अक्षय कुमार की फिल्मों में भी जिनके निर्माता वे खुद होते थे, कभी काका को नहीं लिया गया। अक्षय अपनी फिल्मों में बड़े भाई या पिता के रोल के लिए अमिताभ या दूसरे कलाकारों को तो जगह देते रहे पर "काका" के मामले में उनका हिम्मत जवाब दे जाता था। उन्हे हमेशा यह डर रहा कि काका अगर फिल्म में होंगे तो सारा श्रेय उनको ही चला जाएगा और यदि फिल्म असफल होगी तो ठीकरा अक्षय के सर फटेगा। अक्षय खुद एक सुपर स्टार बनना चाहते थे। निजी जीवन में भले अक्षय कुमार उनके बेहद करीब रहे पर फिल्म के मामलों में हमेशा कन्नी काटते रहे। अतः हमेशा उनके साथ अछूत सा व्यवहार किया जाता रहा, वे काम करने को तरसते रहे, पर कोई उन्हे पुछने तक नहीं आया । इस उपेक्षित व्यवहार की टिश उन्हे मरते दम तक रही।
कभी गुलदस्तों और फूलों से उनका घर भर जाया करता था, सफ़ेद कार लिपिस्टिक के निशानों से गुलाबी हो जाया करते थे, ...सब पीछे छुट गए। “राजेश खन्ना हेयर कट” की जगह अमिताभ कट ने ले ली। एक बार तो उनके जन्म दिन पर कोई बधाई, पत्र या गुलदस्ता तक नहीं आया तब शायद खन्ना साहब को एहसास हो गया की उनका बेहतरीन वक्त गुजर चुका है। जिस रुतबे में उनका कल गुजरा था उसी की तरफ की लालशा उनके जेहन मे हमेशा रही। लोग आयें, मिलें, उनकी बातें करें और उनके स्टारडम को महशुस करें ऐसा ही चाहते रहे राजेश खन्ना। अक्खड़पन मिजाज और गुस्सा उनकी सख्शियत का दूसरा पहलू रहा । कामयाबी के दोहरे नशे को वे शायद ठीक ढंग से हैंडल नही कर पाये । हालांकि आखिरी वक्त तक उन्होने काम या पैसों के लिए किसी के सामने हांथ नही फैलाया।
परिवार की बेरुखी, फिल्मों से दूरी और राजनीतिक नाकामी ने उन्हे शराब और सिगरेट का मरीज बना दिया। उन्हे कैंसर हो गया। 18 जुलाई 2012 को उनका देहांत हो गया ।
यादगार पंक्ति:
" किसे अपना कहें कोई इस काबिल नहीं मिलता, यहां पत्थर तो बहुत मिलते हैं, दिल नहीं मिलता"
" इज्जतें, शोहरतें, उल्फतें, चाहतें; सब कुछ इस दुनिया में रहता नहीं। आज मैं हूं जहां, कल कोई और था; ये भी एक दौर है, वो भी एक दौर था "
जितेन्द्र को उनकी पहली फ़िल्म में ऑडीशन देने के लिये कैमरे के सामने बोलना राजेश ने ही सिखाया था।
राजेश खन्ना ने अभिनेत्री मुमताज़ के साथ आठ फिल्में की, सभी की सभी फ़िल्में सुपरहिट रहीं।
फुटनोट
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Posted by zindgi.com | 1:34 am Categories:बुधवार, 21 अक्टूबर 2020
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Posted by zindgi.com | 7:08 am Categories: Technical error occurred. Please try again after some tome
शनिवार, 17 अक्टूबर 2020
Flight Group Booking # 7 से अधिक यात्रियों के लिए 1PNR पर ग्रुप बूकिंग कैसे करें # How to Book Flight Group Booking
Posted by zindgi.com | 3:41 am Categories:यदि आपकी यात्रा पार्टी में 9 या अधिक यात्री हैं, तो आपको Group Booking सेवा का लाभ लेना होता है ।
कई फ्लाइट सेवा देने वाली कंपनिया Group Booking की सुविधा देती हैं , जहां से बूकिंग की रिक्वेस्ट डालकर विभिन छुट के साथ इस सर्विस का लाभ लिया जा सकता है । इसमे कई अतिरिक्त विकल्प भी दिये जाते हैं >
1)रेगुलर प्राइस के अपेक्षा कम कीमत ।
2) यात्रा से 7 दिन पहले तक नाम जोड़ने की सुविधा ।
3) बुक करने, भुगतान करने और यात्रियों के नाम जोड़ने के लिए एक सुविधाजनक इंटरफ़ेस।
4) सुविधाजनक भुगतान विकल्पों के अलावे ईएमआई सुविधा ।
जिस कंपनी से ये सुविधा लेनी हो उनके वैबसाइट पर जाकर मोबाइल और ईमेल द्वारा खुद को पंजीकृत करें उसके बाद , Group Booking फॉर्म को भरें , फिर फ्लाइट कंपनी द्वारा आपको ईमेल पर सारी डेटल्स भेज दी जाएंगी ,अब अपनी सुविधानुसार बूकिंग कर सकते हैं । किसी भी असुविधा की स्थिति या पूछ-ताछ के लिए उनके कांटैक्ट नंबर पर कॉल करें । किसी थर्ड पार्टी app/website/ या लिंक से कोई पेमेंट नहीं करें .
प्रमुख सेवा प्रदाता :
शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2020
Grahak Seva Kendra Kahan se Len ? ग्राहक सेवा केंद्र कैस खोले? Customer Service Point (CSP)
Posted by zindgi.com | 6:30 am Categories:Grahak Seva Kendra Kaha se len?
ग्राहक सेवा केंद्र कहाँ से लें ? Customer Service Point (CSP)
यहाँ बताना सबसे जरूरी है की अगर आप ग्राहक सेवा केंद्र/Customer Service Point (CSP) लेने के लिए किसी भी कंपनी को ऑनलाइन/ऑफलाइन भुगतान कर रहे हैं तो सबसे पहले उसकी पूरी तरह से जांच पड़ताल जरूर कर लें या नजदीकी ऑफिस पहुँच कर सारी चीजें जान लें, या नजदीक में उस कंपनी से जो सीएसपी प्रोवाइड किए गए हैं उनके यहाँ जाकर पता कर लें, क्योंकि अभी ढेर सारी फर्जी कंपनियाँ लोगों को वेवकूफ बनाकर ग्राहक सेवा केंद्र/Customer Service Point (CSP) देने के नाम पर लूट रहीं हैं । इस तरह अगर आपके साथ कोई फर्जीवाड़ा होता है तो उसके जिम्मेदार केवल आप ही होंगे । इसमे ब्लॉग /वेबसाइट/ब्लॉगर की कोई जिम्मेवारी नहीं । ब्लॉग /वेबसाइट/ब्लॉगर का काम आपको सही जानकारी देना और सतर्क करना है , फिर भी अगर आप किसी फ्रॉड/ठगी के शिकार होते हैं तो इसके दोषी आप खुद होंगे , ब्लॉगर का इससे कोई लेना देना नहीं । इसलिए अगर आप ऑनलाइन/ऑफलाइन किसी भी कंपनी को पेमेंट करते हैं तो अपने स्तर से वेरीफाई जरूर कर लें ।
अब कंपनी से संपर्क करें-
आपको ध्यान रखना होगा कि बहुत सी फ्रॉड कंपनियां
भी हैं जो सीएसपी देने के नाम पर पैसा लेकर चंपत हो जाती हैं
, इसलिए आप जिस किसी कंपनी से भी सीएसपी लेना चाहते हैं उसके बारे में
पूरी जांच पड़ताल करके ही अपना काम शुरू करें। ग्राहक सेवा केंद्र प्रोवाइड कराने
वाली प्रमुख कंपनियों में सीएससी, ARM कमर्शियल, आइसेक्ट आदि हैं। जिनसे आप संपर्क करके ग्राहक सेवा
केंद्र खोल सकते हैं। मिलते जुलते
नामों से फ्रॉड कंपनी के बारे में मूल कंपनी/साइबर विभाग या बैंक अधिकारियों को शिकायत दर्ज कराएं ।
कंपनी को जैसे ही आप एक CSP REQUEST FORM देंगे या भेजेंगे ,कंपनी आप की जानकारी को चेक करेगी, और आपके लोकेशन पर पहुँच कर सभी जरूरी प्रक्रिया पूरी करेगी और आवेदन में जो लोकेशन दिया गया है उस LOCATION पर क्या पहले से कोई CSP मौजूद है या नहीं इसका भी पता लगाएगी, फिर आपको CSP उपलब्ध करवाएगी ।
NOTE :- अगर आप किसी भी कंपनी से Customer Service Point (CSP) लेते हैं तो इसके लिए आपको कम से कम -20000 से 30000 रुपए खर्च करना पड़ सकता है, हालांकि यह रकम कंपनी के हिसाब से कम या ज्यादा हो सकती है ।