अक्षय कुमार और ट्विंकल खन्ना का नाम वाॅलीवुड के शानदार जोड़ियों में लिया जाता है. दोनों , फिल्म "इंटरनेशनल खिलाड़ी" की शूटिंग के दौरान एक दूसरे के करीब आए थे. जबकि, ट्विंकल से पहले अक्षय कुमार का नाम बॉलीवुड की कई अन्य एक्ट्रेस जैसे रवीना टंडन और शिल्पा शेट्टी के साथ भी जुड़ चुका था.
इन्हीं वजहों से ट्विंकल खन्ना अक्षय कुमार के साथ अपने रिश्ते को आगे बढ़ाने में इंट्रेस्टेड नहीं थीं. मीडिया में आयी खबरों के अनुसार ट्विंकल ने दो - तीन हफ्ते अक्षय के साथ बिताने की योजना बनाई ताकि उन्हें ढंग से समझ सकें और इसी बीच दोनों की बॉन्डिंग जम गई. और सही मौका देखकर अक्षय कुमार ने ट्विंकल को शादी के लिए प्रपोज भी कर दिया, लेकिन ट्विंकल इसके लिए राजी नहीं हुईं. उन्हें और वक्त चाहिए था। ट्विंकल खन्ना की फिल्म मेला उन्हीं दिनों रिलीज के लिए तैयार थी और उन्हें इस फिल्म से काफी उम्मीदें भी थीं. ट्विंकल अपने फिल्मी कैरियर में और आगे जाना चाहती थीं। तब अक्षय कुमार ने ट्विंकल के सामने एक शर्त रखी कि यदि फिल्म मेला फ्लॉप हो गई तो उन्हें शादी करना पड़ेगी और अगर हिट रही तो फिल्मों में काम करना जारी रख सकती हैं। ट्विंकल ने अक्षय की यह शर्त मान ली। मेला फ्लॉप रही...अब ट्विंकल के इनकार का कोई कारण नहीं रहा..अब शादी कर लेना उनकी मजबूरी बन गई..क्योंकि वो शर्त भी हार चुकी थीं । 17 जनवरी 2001 को दोनों ने शादी कर ली।
‘जब कोई बात बिगड़ जाए.. जब कोई मुश्किल पड़ जाये’ गायक- कुमार सानू, फिल्म- जुर्म , प्रीमियर का मौका, जब पहली बार कुमार सानू मीनाक्षी शेषाद्री से मिले। शादीशुदा कुमार सानू इस पहली मुलाक़ात में ही मीनाक्षी शेषाद्रि को अपना दिल दे बैठे तो दूसरी तरफ मीनाक्षी भी खुद को कुमार सानू के प्रतिभाशाली व्यक्तित्व से प्रभावित हुये बिना नहीं रह सकीं । मीनाक्षी अच्छा गाती भी हैं फलस्वरूप गायन और गायक के लिए उनका झुकाव स्वाभाविक था। बातें- मुलाकाते, चाहत में बदलने लगी।
कुमार सानू और मीनाक्षी टॉप पर थे, व्यस्त थे, पर मीनाक्षी फिल्मों से दूर एक बेहतर पारिवारिक जीवन जीना चाहती थी, वे फिल्म क्षेत्र में आ तो गई थीं पर इंडस्ट्रीज का बनावटी और दिखावापन उन्हें रास नहीं आ रहा था, शायद इस कारण भी सानु से उनकी नज़दीकियाँ बढ़ती गईं और कब तीन साल गुजर गए पता ही नहीं चला। सानू मीनाक्षी से शादी करना चाहते थे ।
इस बात की खबर जब सानु की पत्नी रीता भट्टाचार्य को लगी तो उन्होने सानू की खबर लेनी शुरू की, इसके पहले भी अन्य महिला मित्रों से सानू के अफेयर की खबरें उन तक पहुंच चुकी थी। उन दिनों रीता प्रेग्नेंट भी थी, उन्हें विशेष देखभाल की जरूरत थी, पर सानू को इनके लिए फुर्सत हीं कहां थी। पत्नी ने विरोध करना शुरू किया तो सानू ने घर ही आना छोड़ दिया । नौबत तलाक तक आ गई, रीता ने तलाक की अर्जी तक दे दी और अर्जी में स्पष्ट रूप से इसका कारण मीनाक्षी शेषाद्रि को बताया। हालांकि मीनाक्षी की तरफ से इस संबंध में कोई भी जबाब नहीं आया और न ही इस आरोप का खंडन ही हुआ । अब तो सभी संशयों पर विराम लग गया था, कुमार सानू के सेक्रेटरी ने भी पुष्टि कर दी थी। मीडिया ने खबर बनानी शुरू कर दी कि कुमार सानू तलाक के बाद मीनाक्षी से शादी कर लेंगे ।
खबरों का मीनाक्षी के कैरियर पर बेहद भद्दा प्रभाव पड़ रहा था। उनके लिए काम करना मुश्किल होने लगा। इन विवादों से बचने के लिए उन्होने सानू से दूरियाँ बनानी शुरू की, वो नहीं चाहती थी कि सानू की वैवाहिक जीवन उनकी वजह से बर्बाद हो। अंततः उन्होंने सानू के साथ- साथ फिल्म इंडस्ट्रीज को भी अलविदा कह दिया और अमेरिका में शादी करके सेटल हो गईं। इधर सानू और रीता का तलाक हो गया, बाद में सानू ने सोनाली भट्टाचार्य से शादी कर ली।
मीनाक्षी शेषाद्रि का असली नाम शशिकला शेषाद्रि है , 1981 में मिस इंडिया रह चुकी है। भरतनाट्यम, कुचीपुडी़, कथक और ओड़िसी नृत्य जानती हैं। निर्देशक राजकुमार संतोषी ने भी मीनाक्षी को शादी के लिए प्रपोज किया था।
रफी साहब और मुकेश जी की दोस्ती की जब भी बातें होती हैं एक गाना मन मस्तिष्क में अचानक से कौंध जाता है, यह वही गाना है जिसकी चर्चा होते ही मुकेश जी और रफी साहब की दोस्ती के किस्से बरबस जुबां पर आ जाते हैं- "सात अजूबे इस दुनिया में आठवीं अपनी जोड़ी" ।
यहां बता देना जरूरी है कि इस गाने की एक पंक्ति को लेकर काफी बवाल भी मचा था, हुआ यह था कि गाने के एक अंतरे में -… मुश्किल से काबू में आये लड़की हो या घोड़ी....वाली लाइन को लेकर फिल्म के निर्माता - निर्देशक और गीतकार को कई विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ा।1977 में आई फिल्म- "धर्मवीर" के गानें फिल्म से पहले रिलीज किये गए , सारे गाने हिटभी रहे, पर इस एक गाने को लेकर हंगामा खड़ा हो गया, खास तौर पर महिला संगठनों ने लड़की की तुलना घोड़ी से किए जाने को लेकर भारी विरोध किया, जाहिर सी बात है लड़की की तुलना एक घोड़ी से करना कहीं से भी उचित नहीं था, फलस्वरूप मामला इतना बढ़ गया कि विवश होकर गाने की उस पंक्ति में ही बदलाव करना पड़ा। गाने की रिकॉर्डिंग और शूटिंग भी दुबारा करनी पड़ी।
पहले गाने को इस तरह रिकॉर्ड किया गया था-
यह लड़की है या रेशम की डोर है, कितना गुस्सा है,कितनी मुंहजोर है
ढीला छोड़ ना देना हंस के रखना दोस्त लगाम कस के
अरे मुश्किल से काबू में आये लड़की हो या घोड़ी.....
बाद में- अरे मुश्किल से काबू मे आये थोड़ी ढील जो छोड़ी.. किया गया था.
अफसोस…, दोस्ती की बखान करने वाले इस गाने के रिकॉर्डिंग के कुछ ही दिन बाद मुकेश जी का अमेरिका में निधन हो गया और इसके साथ ही रफी और मुकेश जी की जोड़ी हमेशा के लिए टूट गई।
पर इस गीत के जरिए मुकेश और रफी की दोस्ती की दास्तान हमेशा जिंदा रहेगी।
बॉलिवुड के प्रतिभाशाली अभिनेता शाहिद कपूर जिन्हें प्यार से लोग साशा भी बुलाते हैं, आइए आज जानें उनकी कुछ ऐसी मजेदार बातें जो रील नहीं रियल लाइफ का हिस्सा हैं।
तीन- तीन बाप
पंकज कपूर और नीलिमा अज़ीम ने 1979 में शादी की, शाहिद कपूर के जन्म के 3 साल बाद ही इनका तलाक हो गया । पंकज कपूर ने नीलिमा के बाद सुप्रिया पाठक से शादी रचा ली, जिनसे उन्हें दो बच्चे रुहान और सना हैं।
वहीं दूसरी तरफ नीलिमा ने राजेश खट्टर से 1990 में दूसरी शादी की और उनसे उन्हें ईशान पैदा हुआ। पर 2001 में इनका तलाक हो गया तब राजेश खट्टर ने वंदना सजनानी से विवाह कर लिया।
शाहिद के काफी विरोध के बावजूद उनकी मां ने उस्ताद रजा अली खान से तीसरी शादी कर ली, हालांकि रजा अली खां की भी ये तीसरी शादी थी। उस्ताद रजा अली खान की दूसरी पत्नी के विरोध के बाद यह शादी भी टूट गई।
ध्यान देने वाली बात यह है कि शाहिद और ईशान खट्टर के पिता अलग- अलग हैं लेकिन दोनों भाइयों के बीच काफी अच्छे रिश्ते हैं । और इसकी एक वजह राजेश खट्टर भी हैं क्योंकि उन्होंने शाहिद के पालन पोषण के लिए काफी वक्त दिया है और उनमें और ईशान में कोई फर्क नहीं किया । इन्हीं वजह से शाहिद कपूर के पासपोर्ट पर शाहिद खट्टर नाम अंकित है। पंकज कपूर से रिश्ते खराब रहने और राजेश खट्टर द्वारा पिता का भरपूर प्यार मिलने के वजह से उनका एक नाम शाहिद खट्टर जाना जाता है।
मीरा शाहिद से 13 साल छोटी हैं। फलस्वरूप एज गैप और उनके लव अफेयर्स को देखते हुए उन्होंने शाहिद से शादी करने से मना कर दिया था। उस वक्त शाहिद 34 के थे और मीरा 21 कीं।
नसरुद्दीन शाह शाहिद कपूर के मौसा लगते हैं।
फिल्म शानदार में इनके पिता पंकज कपूर ससुर के रोल में और
अपनी रोमांटिक छवि के लिए मशहूर बॉलीवुड के सदाबहार अभिनेता देव आनंद अपनी असल जिंदगी में भी बेहद रोमांटिक रहे. एक वक्त था जब देवआनंद को अभिनेत्री और गायिका सुरैया से बेपनाह प्यार हो गया था। देव साहब ने खुद इस बारे में कबूल किया था कि वह सुरैया से बेहद प्यार करते थे और सुरैया उनका पहला प्यार थीं।
एक इंटरव्यू के दौरान देव साहब ने जिक्र किया था- ‘सुरैया मेरा पहला प्यार थीं और मैं उसके लिए रोया हूं। अगर देव आनंद किसी लड़की के लिए रोया है, तो वह सुरैया ही थीं। वह बहुत बड़ी स्टार थीं। वो गाड़ियों में जाती थीं और मैं ट्रेनों में जाता था और पैदल चल चल के कभी कभी उनके दरवाजे पर पहुंच जाता उनके साथ बैठता । मुझे लगा कि वह मुझे चाहती हैं, प्यार करती हैं। मैंने प्रपोज किया और उन्होंने स्वीकार भी किया।
उन्होंने आगे बताया था- ‘मैंने एक जबरदस्त रिंग बनवाई और उसको भेज दी। पर उनका जवाब नहीं आया। मैं तड़प उठा, मैंने उनकी मां को फोन किया। उन्होंने कहा मैं बात कराऊंगी आपसे,वे नर्मदिल थीं, पर उनकी नानी पुराने ख्यालात की। सुरैया और उनके परिवार पर उनका पूरी तरह कंट्रोल था। फिर एक बार मेरी सुरैया से मुलाकात हुई तो मैंने दोबारा पूछा था कि मेरी शादी उनसे होगी कि नहीं होगी? पर उसके बाद उनकी बस चु्प्पी ही रहीं, मैं समझ गया सुरैया अब शायद मेरे लिए उपलब्ध नहीं हैं।’
उसके बाद देव साहब बुरी तरह से टूट गए थे, उदासी इतनी ज्यादा थी कि उनकी आंखों से आंसू निकल रहे थे। उस वक्त उन्होंने अपने बड़े भाई चेतन के कंधे पर अपना सर रखकर भी रोया। यहीं नहीं जब कभी सुरैया का जिक्र होता उनके बारे में सोच सोच कर रोने लगते। तब बड़े भाई चेतन ने भरपूर दिलासा दिलाई । फिर इसके बाद देव आनंद की छवि पूरी तरह बदल गई।
देव आनंद अपने जमाने के बेहद लोकप्रिय अभिनेता थे। लड़कियों में उनकी दीवानगी का यह आलम था कि लड़कियां उन्हें देख कर सब कुछ भूल जाती थीं। देव आनंद काले कोट में बेहद हैंडसम लगा करते थे। ऐसे में हालात ऐसे हो गए थे कि लड़कियों के अजब-गजब कारनामें हुआ करते, फलस्वरूप कोर्ट ने देव आनंद से काला सूट, जैकैट या शर्ट न पहनें कि अपील कि थी।
बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड में अपने दमदार आवाज और जबरदस्त एक्टिंग के लिए प्रसिद्ध चरित्र कलाकार ओम पूरी भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके दमदार अभिनय के लिए उन्हे आज भी याद किया जाता है। ओम पूरी अपनी फिल्मों के अलावा निजी जीवन और विवादित बयानों के चलते भी चर्चा में रहे।
ओम पुरी की दूसरी पत्नी नंदिता पुरी ने उनकी आत्मकथा- ‘असाधारण नायक ओमपुरी’ में उनकी निजी जीवन के कुछ खुलासे किए – “जब ओम पुरी 14 साल के थे तो उनके संबंध 55 साल की एक नौकरानी से थे। आत्मकथा में नंदिता पूरी ने यह भी लिखा कि जब वो 37 साल के थे तब उनके संबंध एक कम उम्र की नौकरानी के साथ बने।
यही सवाल जब ओम पूरी से एक शो में पूछा गया तो उन्होने कहा था- 'आप मुझे एक बात बताइए, इसमें 14 साल के बच्चे का कुसूर है या 55 साल की औरत का?' साथ ही उन्होने कम उम्र की लड़की से संबंध वाले सवाल का जवाब देते हुये यह भी कहा था की - 'मतलब जो 5 साल छोटी है वो कम उम्र की हो गई। 'वैसे भी 'वो उनके लिए कोई नौकरानी नहीं थी । ओमपुरी ने आगे कहा था कि 'उनके पिताजी 80 साल के थे तो वो उनकी देखरेख करती थीं। वो शूटिंग के लिए अक्सर कई-कई दिन बाहर रहते थे।' तब वो सबकी देखभाल करती थीं और मेरे उनके साथ तालुकात हुए। वो उस वक्त शादीशुदा भी नहीं थे।' ऐसे में अभिनेता का मानना था की इसमे किस बात की एडल्ट्री हुई। 37 साल के आदमी की कुछ जरूरत नहीं होती क्या? वो एक तलाकशुदा औरत थीं। हालांकि उन्होने इसके लिए जीवन भर प्रायश्चित किया ।
ओम अपनी पत्नी के आपतिजनक लेखनी से काफी आहत हो गए और कहा कि "मेरी पत्नी को मेरे जीवन का एक बहुत महत्वपूर्ण और पवित्र हिस्सा ऐसे साझा नहीं करना चाहिए था मैंने अपनी पत्नी के साथ इन अंधेरे रहस्यों को साझा किया था, क्योंकि सभी पति ऐसा करते हैं। अगर उन्हें साझा करना ही था तो कम से कम उन अनुभवों के बारे में सम्मान बनाए रखना चाहिए था, जो कि मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। क्या वह भूल गई है कि मैं समाज में खड़ा हू और मैंने आज जो कुछ हासिल किया है उसे पूरा करने के लिए मैंने कड़ी मेहनत की है?
इस बात पर पति-पत्नी में ऐसा विवाद बढ़ा कि दोनों ने एक दूसरे से अलग हो जाने का फैसला किया । उस दौरान नंदिता ने ओमपुरी पर घरेलू हिंसा के आरोप भी लगाए थे।
बात फिल्मफेयर अवॉर्ड -1993 की है, जब सर्वेश्रेष्ठ गीतकार के चयन के लिए गीतकार मजरूह सुल्तापुरी और समीर को नामांकित किया गया था। फिल्म -जो जीता वहीं सिकंदर के लिए मजरूह साहब का लिखा गाना पहला नशा पहला खुमार जहां लोगों में नशा घोले हुए था तो दूसरी तरफ फिल्म दीवाना के लिए समीर के लिखे गीत तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार करते है तारीफ के नित नए आयाम गढ़ रहा था। दोनों ही फिल्में 1992 में रिलीज हुई थीं।
जब श्रेष्ठ गीतकार के नाम कि घोषणा हो रही थी तो उम्र का प्रभाव कहें या अनुभव का आत्मविश्वास मजरूह साहब को ऐसा लगा कि उनके नाम कि घोषणा हो गई और वे पुरस्कार लेने मंच तक पहुंच गए तभी इस पुरस्कार के लिए समीर के नाम कि घोषणा हुई..समीर की तो हालात खराब हो गई, उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें... जिनको वे अपना गुरु मानते हैं और पिता समान इज्जत करते हैं..उनके ही गाने को हराकर आज वे श्रेष्ठ गीतकार का ये सम्मान कैसे ले पाएंगे, जिसके लिए भूलवश मजरूह साहब मंच पर आ गए हैं। खैर... वे मंच पर गए और एक निवेदन किया, उन्होंने कहा कि मेरी बचपन से ही दो ख्वाहिश थी एक कि जब भी पहला अवॉर्ड मिलेगा अपने पिता के हांथ से लूंगा जो कि फिल्म आशिकी से पूरी भी हो गई और दूसरा अवॉर्ड जब कभी मिलेगा आनंद बक्शी और मजरूह सुल्तानपुरी से लूंगा जिन्हें मैं अपना गुरु मानता हूं और आज वह सपना भी पूरा हो गया। मैं चाहता हूं कि यह सम्मान मुझे मजरूह साहब के हाथों से मिले।
उसी रात मजरूह साहब ने समीर को डिनर पर बुलाया और कहा कि आज मेरी इज्जत बचाकर तुमने साबित कर दिया कि तुम अनजान के बेटे हो, मेरी दुयाएं हमेशा तेरे साथ है।
सबसे अधिक गाने लिखने का गिनीज विश्व कीर्तिमान भी समीर के नाम दर्ज है। इनके पिता अनजान भी प्रसिद्ध गीतकार रहे थे।
UCL क्लाइंट ओपन नहीं हो रहा हो, ओपन करने की कोशिश करने पर कुछ देर प्रोसेस करने के बाद क्लाइंट कट जा रही हो तो - C:\UID Authority of India\Aadhaar Enrolment Client\seed
Seed Folder में जाकर client-ota-3.3.4.2.96-1-windows-32 याclient-ota-3.3.4.2.103-1-windows-32 फाइल को एक्सट्रेक्ट करें, एक्सट्रेक्ट की गयी फाइल को ओपन करें और उसमे से सभी फाइल को कॉपी करे फिर बैक आकर UID Authority of India में पेस्ट कर दें .
नोट- इन सभी प्रक्रिया को करने से पहले सर्विस में जाकर
स्टॉप कर दें और प्रक्रिया के बाद उन्हें फिर से रीस्टार्ट कर दें . फिर सिस्टम रीस्टार्ट कर दें ,
डेट और टाइम भी प्रॉपर सेट हो , इंटरनेट कनेक्टिविटी भी स्टेटिक ip वाली जोड़ के रखें
Failed to Sync operator Details due to network issue, please check your internet connection and try again Solved
इस समस्या के समाधान के लिए दिए गए लिंक से प्रॉक्सी फाइल को डाउनलोड कर C:\UID Authority of India\Aadhaar Enrolment Client\conf फोल्डर में पेस्ट करके दुबारा प्रयास करें
किसी भी सॉफ्टवेयर की serial key के लिए अगर गूगल पर आपको काफी खोजबीन करनी पड़ती है तो बस इस कीवर्ड का प्रयोग करके बड़ी आसानी से किसी भी सॉफ्टवेयर का सीरियल की सर्च कर सकते हैं-
जिस किसी भी सॉफ्टवेयर की serial key आपको मालूम करने हो गूगल पर उसे टाइप करने के बाद लास्ट में 94fbr टाइप करें, परिणाम आपके सामने होंगे। (वैसे तो सभी पॉपुलर सॉफ्टवेयर के सीरियल की 94 एफबीआर पर पहले से ही मौजूद है) वेबसाइट लिंक नीचे दी गई है
मान लिया आपको Filmora किस सीरियल key या क्रैक डाउनलोड करनी है तो आप गूगल में टाइप करें -filmora 94fbr उसी तरह अगर आपको विंडोज 10 की सीरियल की सर्च करनी है तो आप गूगल में टाइप करें- win 10 94fbr
csp क्या है - ग्राहक
सेवा केंद्र (CSP) मिनी बैंक जैसा होता है। जहां बैंक से जुड़ी सुविधाएं
उपलब्ध कराई जाती हैं। इन सुविधाओं में अकाउंट ओपन करना , पैसों की जमा और
निकासी करना , पैसे ट्रांसफर करना , RD , FD करना , इंश्योरेंस करना जैसी
सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। और इन्हीं सुविधाओं के आधार पर कमीशन का निर्धारण होता
है , जिनमे कुछ हिस्सा कंपनी रख लेती है ।
मुख्य बातें -ग्राहक सेवा केंद्र द्वारा
एक व्यक्ति महीने में आसानी से 25000 – 30000 की कमाई कर सकता है। यहां पर
बैंकों द्वारा बैंक मित्र को प्रत्येक काम के लिए अलग-अलग कमीशन प्रदान
किया जाता है। और ये कमीशन कंपनी वाइज़ अलग-अलग होती हैं। क्योंकि बैंक सीधे
Customer Service Point नहीं देकर जिस कंपनी से अग्रीमेंट हुआ होता है
उनके माध्यम से देती हैं ।
ग्राहक सेवा केंद्र कैसे लें -
ग्राहक
सेवा केंद्र प्रोवाइड कराने वाली प्रमुख कंपनियों में स्थानीय तौर पर
सुचारु रूप से कार्यरत कंपनी ARM KENDRA (Arm Commercial Services Pvt Ltd) से संपर्क करके ग्राहक सेवा केंद्र खोल सकते
हैं। जिसमे कंपनी लोकेशन की उपलब्धता के आधार पर आपसे सभी जरूरी डाक्यूमेंट्स लेकर बैंक को अपने माध्यम से पर्पोजल देती हैं ,फिर बैंक अपना recommendation
RBO को भेजता है, फिर वहाँ से Zonal और अंत मे LHO से वेरिफ़ाई होकर ID
पासवर्ड जेनेरेट होता है। (किसी प्रकार की त्रुटि होने पर आवेदन रिजैक्ट भी
होता है ) id पासवर्ड आ जाने पर कुछ दिनों मे लिंक ब्रांच के सिस्टम पर
दिखाई देने लगती है और इसकी सूचना ज़ोन और आरबीओ के अलावे लिंक ब्रांच में भेज दी जाती हैं , तब आपका सिस्टम कोन्फ़िगर और सॉफ्टवेर इन्स्टालेशन करके
काम शुरू कराया जाता है ।
इन सब में 3-4 महीने या अधिक समय भी लगता है, शहरी क्षेत्रों में अपेक्षाकृत थोड़ा कम समय लगता है । सभी जरूरी डॉक्युमेंट्स - आवेदन फॉर्म , 2पासपोर्ट फोटो, आचरण प्रमाण पत्र ,नोटरी एफेडेविट, अग्रीमेंट स्टाम्प पेपर , CIBIL, आधार कार्ड, पैन कार्ड, इंटरमीडिएट सर्टिफिकेट, बैंक पासबूक, Two References और उनके आधार, पैन और बैंक पासबूक ।
Arm Commercial services private limited financial inclusion क्षेत्र में अग्रणी कंपनी है. अधिक जानकारी के लिए official website विजिट करें.
कोई अन्य जानकारी के लिए ईमेल: raj@armkendra.com
नोट- कई कंपनियां हैं जो ग्राहक सेवा केंद्र खोलने की सुविधा देती हैं , लेकिन आपको ध्यान रखना होगा कि बहुत सी फ्रॉड कंपनियां भी ऑनलाइन फेक वैबसाइट बनाकर रजिस्ट्रेशन फी और सेक्यूरिटी डिपॉज़िट के नाम काफी पैसा लूट लेती हैं । इसलिए आप जिस कंपनी से भी सीएसपी लेना चाहते हैं। उसके बारे में पूरी जांच पड़ताल करके ही अपना काम शुरू करें।
सदी के महानायक कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन” की बतौर नायक फिल्मी करियर की शुरुआत फिल्म -”सात हिन्दुस्तानी” से हुई, मगर इस फिल्म ने अपने साथ दर्जन भर और फ्लॉप फिल्में जोड़ लीं । अमिताभ पर फ्लॉप हीरो का तमगा लग गया और उन्होने यह घोषणा कर दी की अगर अगली फिल्म फ्लॉप हुई तो वे फिल्मों से सन्यास ले लेंगे । संयोग कहें या किस्मत अगली “ज़ंजीर” फिल्म हिट साबित हुई और इस फिल्म ने अमिताभ को बचा लिया । फिर डॉन, दीवार, और शोले जैसी कई हिट फिल्में आईं ।
उसके बाद उन्होने 1995 में 'एबीसीएल(अमिताभ बच्चन कॉर्पोरेशन लिमिटेड)' नाम की फिल्म प्रोडक्शन और इवेंट मैनेजमेंट कंपनी की शुरुआत की। कंपनी के फेल होने के बाद अमित जी को काफी नुकसान हुआ और इनपर लगभग 90 करोड़ का कर्जा हो गया । ऐसा माना जाता है की अमिताभ ने जिन लोगों पर विश्वास करके कंपनी के मैनेजमेंट का भार सौंपा था उन्होने ही कंपनी को डुबो दिया । इस दौरान अदालत ने अमिताभ पर 55 केस भी ठोक दिये। अब संपति के नाम पर इनके पास केवल एक घर बच गया था जिसपर पहले से ही "कुर्की "का आदेश था । आर्थिक रूप बेहद खराब स्थिति के चलते अमिताभ डिप्रेशन के शिकार हो गए । इसी उलझन के चलते उन्होंने कोई भी छोटी-बड़ी फिल्म के साथ छोटे पर्दे पर भी काम करना शुरू कर दिया। तब छोटे पर्दे का "कौन बनेगा करोड़पति" शो उनके लिए लकी साबित हुआ , इस.शो के जरिये अमिताभ ने जहां लोगों को करोड़पति बनने का मौका दिया वहीं खुद को कर्जे से बाहर निकालने की भरपूर संघर्ष भी की । इस आर्थिक तंगी में केबीसी के अलावा निर्देशक यश चोपड़ा ने उनकी मदद की उनके लिए फिल्म 'मोहब्बतें' बनाकर जो अमिताभ के लिए टर्निंग प्वॉइंट साबित हुई।
हिट होने के साथ अमिताभ ने प्रॉपर्टी पर ढेर सारा पैसा खर्च किया और कई बंगलों का निर्माण करवाया । जिसमे “प्रतीक्षा” पहला बंगला है जहां वे अपने माता-पिता के साथ रहते थे। “जलसा” निर्देशक रमेश सिप्पी द्वारा उनकी फिल्म ‘सत्ते पे सत्ता ’के मेहनताने और उपहार स्वरूप दिया था । “जनक” यह मीडिया और कार्यालीय उपयोग के लिए बनवाया गया। "वत्स " नाम के बंगले को सिटी बैंक इंडिया को किराए पर दिया गया है, जो अन्य बंगलों से थोड़ा छोटा है। जलसा के पीछे भी एक नया बंगला बनाया गया है जिसे कोई नाम नहीं दिया गया है,इसे बच्चन परिवार के लिए जलसा का विस्तारित रूप कह सकते हैं ।
आज अमिताभ 1000 करोड़ से भी अधिक संपति के मालिक हैं। नोएडा, अहमदाबाद, गांधीनगर, पुणे और भोपाल के अलावे फ्रांस के ब्रिग्नोगन में भी इनके प्लॉट है। लखनऊ और बाराबंकी में कई कृषि योग्य जमीन है। आज भी अमिताभ एक फिल्मों के लिए 7-8 करोड़ और विज्ञापनों के लिए 5 करोड़ चार्ज करते हैं ।
रफी के रोमांटिक गानें हों , किशोर के मस्ती भरे नगमें या मुकेश के दर्द भरे गीत । तीनों ही गायकों के अपने-अपने अलग-अलग अंदाज रहे। तीनों गायकों की अपनी अपनी फैन फॉलोइंग भी रही। पर कुछ श्रोता ऐसे भी रहे जिन्हें इन तीनों की ही गायन शैली ताउम्र लुभाती रही।
कैरियर से जुड़ा एक संयोग - मोहम्मद रफ़ी ने अपने करियर की शुरुआत 1944 में, मुकेश ने 1945 में और किशोर कुमार ने 1946 में की ।
मोहम्मद रफी ने 1944 में अपने प्लेबैक सिंगिंग की शुरुआत पंजाबी फिल्म -" गुल बलोच" के गाने से की थी। इसके बाद कुछ दिन ऑल इंडिया रेडियो ( लाहौर स्टेशन) के लिए गाते रहे। फिर मुंबई आ गए और हिंदी फिल्मों में गाने लगे। दिलचस्प बात यह है कि सन 1971 में "हज" से लौटते समय मौलवियों ने उनसे कहा- आप हाजी हो गए हैं , इसलिए अब आपको फ़िल्मों में नहीं गाना चाहिए. इसके बाद रफी ने भारत लौटकर गाने गाना बंद कर दिया था."
पार्श्व गायक के तौर पर सन-1945 में फ़िल्म "पहली नज़र" के लिए मुकेश ने जो पहला गाना गाया ,वह था -"दिल जलता है तो जलने दे" जिसे अभिनेता मोतीलाल पर फिल्माया गया था ।
किशोर कुमार को पहली बार फिल्म - शिकारी के लिए गाने का मौका 1946 में मिला, जब वे 17 साल के थे, पर बाद में उस गाने को फिल्म से हटा दिया गया, आगे चलकर 1948 में उन्होंने फिल्म जिद्दी के लिए-" मरने की दुआएं क्यों मांगू" गाया और 1949 आते आते संगीत जगत मे पुरी तरह स्थापित हो गए।
निधन से जुड़ा विचित्र संयोग - रफी का निधन 1980 में मात्र 56 वर्ष की उम्र में हो गया, किशोर कुमार का निधन 1987 में मात्र 58 वर्ष की उम्र में हो गया, और मुकेश का निधन 1976 में मात्र 53 वर्ष की उम्र में हो गया।
इन तीनों ही गायकों की मौत तब हुई जब ये अपनी गायकी के उत्कर्ष पर थे, निजी जीवन में तीनों एक दूसरे के गहरे मित्र रहे और जब भी मिलते एक दूसरे के लिए लंबी उम्र की दुआएं मांगते पर अफसोस कोई भी 60 वर्ष की उम्र को पार नहीं कर सका। बेहद दिलचस्प बात यह है कि तीनों महान गायकों का देहांत हार्ट अटैक की वजह से ही हुआ।
गायन से जुड़ा ऐतिहासिक संयोग - रफी और किशोर , रफी और मुकेश, किशोर और मुकेश ने वैसे तो कई नगमे साथ साथ गाए पर एकमात्र फिल्म "अमर अकबर एंथनी" में तीनों गायकों ने एक साथ गाया। मजे की बात यह रही की "हमको तुमसे हो गया है प्यार क्या करें " गाने में लता मंगेशकर ने इन तीनों के साथ पहली और आखरी बार गाया। हालांकि यह गीत मुकेश के देहांत के बाद रिलीज हुआ जिसकी रिकॉर्डिंग पहले ही कर ली गई थी।
जगजीत सिंह हिन्दी सिनेमा में पार्श्वगायक बनने का सपना लेकर घर से बिना किसी को बताए मुंबई भाग आए थे । तब दो वक्त की रोटी के लिए कॉलेज और पार्टियों में गाया करते थे। ये वो दौर था जब तलत महमूद, मोहम्मद रफ़ी , किशोर कुमार, मन्नाडे जैसे दिग्गज गायक लोगों की जुबां पर चढ़े हुये थे । इन महारथियों के दौर में दूसरे लोगों को पार्श्व गायन का मौक़ा मिलना बहुत ही मुश्किल था । हालांकि जगजीत सिंह हल्के शास्त्रीय धुनों पर आधारित अपने पहले एलबम ‘द अनफ़ॉरगेटेबल्स’ रिलीज कराने में कामयाब रहे । जगजीत ने इस एलबम की कामयाबी के बाद मुंबई में अपना फ़्लैट भी ख़रीद लिया था ।
1981 में आई फिल्म ‘प्रेमगीत’ और 1982 में प्रदर्शित फिल्म ‘अर्थ’ में जगजीत सिंह ने बतौर संगीतकार हिट धुनें तैयार कीं, फ़िल्म के सभी गाने लोगों की जुबां पर चढ़ गए । लेकिन इसके बाद फ़िल्म- लीला, ख़ुदाई, बिल्लू बादशाह, क़ानून की आवाज़, राही, ज्वाला, लौंग दा लश्कारा, रावण और सितम जैसे फिल्मों में भी संगीत दिया, पर सारी की सारी फिल्में असफल रहीं और उनके संगीत बेहद नाकामयाब रहे । इस तरह जगजीत सिंह ने बतौर संगीतकार फ़िल्मों में हिट संगीत देने के लिए काफी पापड़ बेले लेकिन वे अच्छे फ़िल्मी गाने रचने में विफल ही रहे। मायूस होकर उन्होने गायन पर अपना सम्पूर्ण ध्यान लगाना शुरू किया। क्योंकि इनकी गायिकी इनके ही संगीत पर भारी पड़ने लगी ।
एक गायक के रूप में जगजीत जी लोगों की दिल की गहराइयों में उतरते रहे । इनका- ‘होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो’, ‘ओ मां तुझे सलाम’, ‘‘चिट्ठी ना कोई संदेश’, ‘बड़ी नाज़ुक है ये मंज़िल’ , ‘ये तेरा घर, ये मेरा घर’ , ‘प्यार मुझसे जो किया तुमने’ , ‘होशवालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है’ ‘, ‘हाथ छुटे भी तो रिश्ते नहीं छूटा करते’ , ‘कोई फ़रयाद तेरे दिल में दबी हो जैसे’ ,‘तुम पास आ रहे हो’ या ‘मेरी आंखों ने चुना है तुझको दुनिया देखकर’ जैसे गीत बेहद हिट रहे।
ग़ज़लों को फ़िल्मी गानों की तरह गाये जाने की वजह से आमलोगों द्वारा इसे बहुत पसंद किया जाने लगा लेकिन ग़ज़ल की दुनिया में जिस शास्त्रीय शैली का निर्वाह बेग़म अख़्तर, कुन्दनलाल सहगल, तलत महमूद, मेहदी हसन आदि गायकों ने किया था उस परम्परा से हटकर परंपरागत गायकी के शौकीनों को जगजीत सिंह की ये शैली और प्रयोग पसंद नहीं आई । उनका आरोप था की जगजीत सिंह ने ग़ज़ल की मूल भावना और स्वभाव के साथ छेड़छाड़ की है। हालांकि जगजीत सिंह ने शब्दों और वाद्ययंत्रों से संबन्धित बदलाव जारी रखा। इस बीच उन्होने फ़िल्मी गानों का कवर वर्सन एलबम क्लोज़ टू माइ हार्ट निकाला लेकिन इसमे रफ़ी साहब का कोई गाना नहीं था। गौर करने वाली बात है की रफी साहब को ये अपना आदर्श मानते थे, लेकिन संघर्ष के दिनों में उनके ही बारे में तीखी टिप्पणी करके आलोचनाओ के शिकार भी हो चुके थे। पाकिस्तान द्वारा वीजा नही दिये जाने से नाराज जगजीत सिंह ने पाकिस्तानी गायकों पर बैन लगाने की मांग की थी। हालांकि बाद के दिनों में जब पाकिस्तान से बुलावा आया तो ये नाराजगी भी दूर हो गयी । बाद में पाकिस्तानी गजल गायक मेहंदी हसन को इलाज के लिए पैसों की मदद भी की।
गजल गायक गुलाम अली के साथ एक शो की तैयारी करते करते गजल के बादशाह जगजीत सिंह का 10 अक्टूबर 2011 सुबह 8 बजे मुंबई में देहांत हो गया ।
ज़िंदगी .कॉम में आपका स्वागत है (यह किसी साइट का नाम नहीं बल्कि जीवन जीने का दूसरा नाम है) दुनिया में जन्म से लेकर अंत तक जिये जाने वाले जीवन की - हिंदी तकनिकी एवं सांगीतिक यात्रा जहाँ संगीत से जुड़ी हैं ढेरों ऐसी कड़ियाँ जो दिलचस्प और ज्ञानवर्धक तो है हीं ,जीवन में गहराई तक जुड़ी हुयी हैं !