शनिवार, 7 नवंबर 2020

 

बात 1960 की है , जब लता मंगेशकर लोकप्रिय हो चुकी थीं और अपने गानों के लिए रॉयल्टी लेना शुरू कर दिया था , लेकिन वो चाहती थीं की अन्य सभी गायक-गायिकाओं को भी रॉयल्टी मिले। इसके लिए उन्होने पहल करना शुरू कर दिया, और गायक मुकेश एवं तलत महमूद के सहयोग से एक “ संघ” बनाकर उस बक्त के टॉप रिकॉर्डिंग कंपनी एचएमवी और फिल्म निर्माताओं से इसकी मांग रख दी ।

हालांकि इनकी मांग पर जब कोई शुरुआती सुनवाई नहीं हुई तो इन्होने रिकॉर्डिंग कंपनियों और निर्माताओं के लिए गाना ही छोड़ दिया । रिकॉर्डिंग कंपनियों और निर्माताओं का ये कहना था की जब गायकों को गाने के लिए पैसा मिलता ही है तो रॉयल्टी किस बात की ।रफी साहब को रिकॉर्डिंग कंपनियों और निर्माताओं की ये बात अच्छी लगी और उन्होने बिना रॉयल्टी की मांग किए गाना जारी रखा ।

रफी के इस रवैये से रॉयल्टी की मांग करने वाला संघ असरहीन होने लगा । तब संघ के सभी गायकों ने इस मुद्दे पर बात करने के लिए रफी साहब से संपर्क किया । रफी पर रिकॉर्डिंग कंपनियों और निर्माताओं की बातों का ऐसा असर हुआ था की वे रॉयल्टी का नाम सुनते ही भड़क गए और गुस्से मे लता की तरफ देखते हुये बोले- अगर समझाना है तो इस महारानी को समझाओ मुझे नहीं । तब लता भी गुस्से मे आकर बोलीं – आपने ठीक समझा मै महारानी ही हूँ। बात बढ़ने लगी रफी इसबर खीझते हुये बोले- अब से मैं तुम्हारे साथ गाने ही नहीं गाऊँगा। तब लता भी खुद को नहीं रोक सकीं और आँखें लाल करते हुये बोलीं- आप क्यों तकलीफ करते हैं –मैं ही आपके साथ कभी नहीं गाऊँगी।

इस घटना के बाद लता ने सभी संगीतकारों को फोन कर कर के बोलना शुरू किया की आइंदा किसी भी गाने के लिए जिद नहीं करें जो रफी साहब के साथ हो । ये सिलसिला लगभग चार सालों तक चला, हालांकि बाद के दिनों मे सब कुछ ठीक हो गया । अब गायकों को रॉयल्टी भी मिलने लगी थी ।

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