एक अमीर घराने की लड़की और गरीब लड़के के बीच प्यार को जिस प्रकार फिल्मों में दिखलाया जाता है उसी तरह की कहानी है इन दोनों की ।
24 साल के अब्दुल करीम को 1887 में आगरा से ब्रिटेन (लंदन ) महारानी का सेवक (टेबल वेटर ) बनाकर भेजा गया था, इससे पहले अब्दुल करीम और उनके पिता आगरा जेल में काम करते थे जहां अब्दुल को एक साल के 60 रुपए मिलते थे । इस बीच जब महारानी के खासदारों आगरा जेल का दौरा किया तो महारानी को खुश करने के लिए उपहार स्वरूप दो नौकरों को उनके साथ भेजा गया जिनमे एक अब्दुल करीम भी थे ।
लंबे कद और खूबसूरत व्यक्तित्व के धनी अब्दुल करीम के व्यवहार ने रानी को इतना प्रभावित किया की वो उनके करीब आती गईं. बाद में अब्दुल करीम के नाम के आगे मुंशी जुड़ गया. वह महारानी के भारत सचिव बन गए. जब रानी को अब्दुल से प्रेम हुआ उनकी उम्र 60 वर्ष थी. अलग-अलग भाषा सीखने की जुनूनी रानी ने इन्हे दरबार में शिक्षक का दर्जा दे भी दिला दिया और उन्हें निर्देश दिया गया कि वो महारानी को हिंदी और उर्दू सिखाएं.
महारानी अक्सर अपने दिल की बातें उन्हें खत में लिखती थीं.तो उसके अंत में ‘तुम्हारी प्रिय मां’ और ‘तुम्हारी सबसे करीबी दोस्त’ लिखती थीं। कभी-कभी तो महारानी अपने पत्रों में चुंबन के प्रतीक भी बनाती थी, जो उस समय में बेहद असाधारण बात थी. दोनों के बीच का रिश्ता काफ़ी भावुक था जिसका विभिन्न स्तर पर वर्णन किया जा सकता है.ये रिश्ता एक जवान भारतीय आदमी और एक 60 वर्षीय महिला के बीच का एक रिश्ता था, या फिर कहें कि ये एक मां और बेटे के बीच जैसा रिश्ता था।
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