सबसे पहले तो हम आपको ये बता दे कि जिस एक्टर की आवाज सुन कर ही लोग उनके दीवाने हो जाते थे, उसी एक्टर को गले का कैंसर हो गया था। गले के कैंसर के कारण राजकुमार जी की तबियत इतनी ज्यादा खराब रहने लगी कि उन्हें अपना मरना निश्चित लग रहा था। हालांकि अंत तक उन्होने अपनी बीमारी को छुपा कर रखा, शायद इसी वजह से जब उन्हे लगने लगा की अब वे जिंदा नहीं रह पाएंगे, तो उन्होने अपने बेटे से अपनी मौत की खबर मीडिया से छुपा कर रखने की बात कही थी ।
आरंभिक और बाद की फिल्मों में बोलने के अंदाज पर गौर करें तो यकीनन आपको फर्क महसूस होगा जब उन्हे कैंसर हो गया था। तेज या जल्दी जल्दी बोलने से इनकी तकलीफ अक्सर बढ़ जाया करती थी इसलिए डॉक्टर द्वारा इन्हे ज्यादा ज़ोर से नहीं बोलने की हिदायत थी, फलस्वरूप उन्होने इसपर अमल करना शुरू किया जिसका असर इनके डायलॉग में भी साफ साफ दिखता है। हालांकि यही मजबूरी इनकी सबसे बड़ी खूबी साबित हुई.
इनके डायलॉग कि कुछ बानगी यहां देखिए:
- जानी.. हम तुम्हे मारेंगे, और ज़रूर मारेंगे.. लेकिन.. ,वो बंदूक भी हमारी होगी, गोली भी हमारी होगी और वक़्त.. भी हमारा होगा.
- हम वो कलेक्टर नहीं जिनका फूंक मारकर तबादला किया जा सकता है. कलेक्टरी तो हम शौक़ से करते हैं, रोज़ी-रोटी के लिए नहीं. दिल्ली तक बात मशहूर है कि राजपाल चौहान के हाथ में तंबाकू का पाइप और जेब में इस्तीफा रहता है.
- शेर को सांप और बिच्छू काटा नहीं करते..
दूर ही दूर से रेंगते हुए निकल जाते हैं. - इस दुनिया में तुम पहले और आखिरी बदनसीब कमीने होगे, जिसकी ना तो अर्थी उठेगी और ना किसी कंधे का सहारा. सीधे चिता जलेगी.
- अपना तो उसूल है. पहले मुलाकात, फिर बात, और फिर अगर जरूरत पड़े तो लात.
- बोटियां नोचने वाला गीदड़, गला फाड़ने से शेर नहीं बन जाता.
- . ये बच्चों के खेलने की चीज़ नहीं,
हाथ कट जाए तो ख़ून निकल आता है. - ना तलवार की धार से, ना गोलियों की बौछार से.. बंदा डरता है तो सिर्फ परवर दिगार से.
- महा सिंह, शेर की खाल पहनकर आज तक कोई आदमी शेर नहीं बन सका.
और बहुत ही जल्द हम तुम्हारी ये शेर की खाल उतरवा लेंगे - हम आंखों से सुरमा नहीं चुराते, हम आंखें ही चुरा लेते हैं.
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